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द्वैताद्वैत
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फलाना-फलाना आचार्य हूँ।' यह तो आप सभी आचार्य बन बैठे और दुकान खोलकर बैठे हैं! किसी जगह पर सिर्फ द्वैत शब्द रखा ही नहीं जा सकता और सिर्फ अद्वैत शब्द भी नहीं रखा जा सकता। ये लोग तो द्वैत या अद्वैत शब्द का अर्थ भी नहीं समझते और द्वैत की या अद्वैत की दुकानों में घुस जाते हैं ! जब तक देह है, तब तक शुद्धात्मा द्वैताद्वैत है। सिर्फ अद्वैत कोई बन ही नहीं सकता है। अद्वैत विकल्प है और द्वैत के आधार पर है। वीतराग तो ग़ज़ब के हो चुके हैं! द्वंद्वों के सागर में अद्वैत का रक्षण करने के लिए सामनेवाले के साथ झगड़ना, उसी का नाम द्वैतभाव! अद्वैत के रक्षण के लिए सामनेवाले के साथ वाद-विवाद में उतरना, वही द्वैत
अद्वैत को भगवान ने विधुर कहा है और द्वैत को विवाहित कहा है! भगवान तो द्वैताद्वैत हैं, तू द्वंद्वातीत हो जाएगा तो हल आएगा। यह संसार किसी को भी नहीं छोड़ता। पांडवों का तेल निकाल दिया और राम तो जंगल में गए, वहाँ भी उनकी स्त्री को उठाकर ले गए! ऐसा है यह जगत् !
वीतराग कहते हैं, 'ये चंदूभाई नहीं हैं और हैं भी सही। अस्ति नास्ति - हैं और नहीं भी हैं। स्वरूप का भान नहीं हो तो वे चंदूभाई हैं और स्वरूप का भान हो जाए तो वे चंदभाई नहीं हैं।'
___ जगत् पूरा ही एकांतिक है, एक वस्तु निश्चित ही कर देता है कि ऐसा ही होता है। 'ज्ञानीपुरुष' अन्-एकांतिक होते हैं, बिल्कुल निराले होते
हैं!
इस जगत् में पोइजन भी एक गुणवाला नहीं है और अमृत भी एक गुणवाला नहीं है, द्विगुणवाले हैं सभी। इसलिए किसी के लिए भी एकांतिक मत बोलना। 'ये डॉक्टर खराब हैं' ऐसा मत बोलना, अथवा 'सभी डॉक्टर अच्छे हैं' ऐसा भी मत बोलना, लेकिन हमें व्यू पोइन्ट लक्ष्य में रखना है कि किसी अपेक्षा से इस प्रकार के हैं और किसी अन्य अपेक्षा से दूसरे प्रकार के हैं। इस पोइजन में भी कुछ अच्छे गुण हैं। यदि एक खास लिमिट में पोइजन खाया जाए तो सभी रोग मिटा देता है और यदि उससे अधिक खा लिया जाए, तभी मारता है!