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आप्तवाणी-२
मनुष्य जीवन में एन्ड तक सभी कुछ फरजियात (अनिवार्य) है। पूरा संसार ही फरजियात है, द्वितियम नहीं लेकिन तृतियम है, लेकिन पूरा जगत् इसे मरजियात (ऐच्छिक) मानकर चलता है। अद्वैत मतलब एक तरफ, द्वैत मतलब दूसरी तरफ और यह तो तृतियम! द्वैत में रहता है, तब तक सीधा रहता है। द्वैताद्वैत में होता है, तब वहाँ पर आत्मा होता है और जहाँ तृतियम हो वहाँ पर सिर्फ संसार है! ज्ञेय-ज्ञाता का संबंध द्वैत है, खुद अपने आप के लिए ही अद्वैत है। इसलिए आत्मा द्वैताद्वैत है, बाकी का सभी कुछ तृतियम है। 'मरजियात' तृतियम नहीं कहलाता। 'फरजियात,' तो पूरा ही तृतियम है।