Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 436
________________ वेदांत ३९९ साथ संबंध बाँध देना, वह ब्रह्मसंबंध है। 'ज्ञानीपुरुष' जगत् में से आपकी निष्ठा उठाकर ब्रह्म में बैठा देते हैं और आपको ब्रह्मनिष्ठ बना देते हैं ! इसमें तो आत्मा और अनात्मा को गुणधर्म द्वारा जुदा करना है। अनंत जन्मों से आत्मा और अनात्मा भ्रांतिरस से जुड़े हुए हैं। 'ज्ञानीपुरुष' आपके पाप जला देते हैं तब जाकर आपको स्वरूप का लक्ष्य रहता है, उसके बिना लक्ष्य कैसे रहेगा? यदि कोई आपसे पूछे कि, 'आपका कौन सा धर्म है?' तो कहना कि, 'हमारा तो स्व-धर्म है।' आत्मा, वह 'स्व' है और आत्मा जानने के बाद ही स्वधर्म शुरू होता है! __'जिन' को जाने तब जैन बनता है, वर्ना जैन, वह तो वंशागत है। वैष्णव भी वंशागत है, लेकिन हमारी वाणी को जो एक घंटे तक सुने, वही सच्चा जैन और सच्चा वैष्णव है। कईं जन्म लेने के बावजूद भी वैधव्य आएगा, इसलिए हमारे साथ ब्रह्म का संबंध बाँध लेना, वर्ना मरते समय कोई साथ नहीं देगा। बाकी यह संसार तो पूरा दगा है! इसलिए हमारा संबंध बाँधो, इसका नाम ब्रह्मसंबंध और यह संबंध कैसा कि कोई निकाल दे तो भी जाए नहीं। संसार तो वैधव्य का स्थान है और दुःख का संग्रहस्थान है, उसमें सुख कहाँ से दिखेगा? वह तो मोह रहता है, इसलिए जरा अच्छा दिखता है, मोह उतरेगा तो संसार कड़वा ज़हर जैसा लगेगा, मोह के कारण कड़वा नहीं लगता। हमारे साथ ब्रह्मसंबंध बाँध लेना, तो आपका कल्याण हो जाएगा। यह जो देह दिखती है वह तो बुलबुला है, लेकिन देह के भीतर 'दादा भगवान' बैठे हैं तो काम निकाल लेना। दस लाख सालों में 'यह' अवतार प्रकट हुआ है, संसार में रहकर मोक्ष मिलेगा। यह बुलबुला फूट जाएगा, उसके बाद भीतर बैठे हुए 'दादा भगवान' के दर्शन नहीं होंगे, इसलिए बुलबुला फूटने के पहले दर्शन कर लेना। ब्रह्मसंबंध अर्थात् जहाँ ब्रह्म प्रकट हो गया है उनके चरण के अंगूठे

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