Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 431
________________ ३९४ आप्तवाणी-२ है और बाकी के सभी अन्य मार्ग हैं, ऐसा कहा है। अन्यमार्ग, वे व्यवहार मार्ग हैं, पाप-पुण्य जिसमें उपादेय है, वह व्यवहार मार्ग में समाता है। अज्ञान से ही मोक्ष रुका है जैनों में कहा गया है कि, 'राग, द्वेष और अज्ञान निकाल' और वेदों में भी कहा गया है कि 'मल, विक्षेप और अज्ञान निकाल।' यानी इन दोनों में अज्ञान कॉमन है, मुख्य है। यदि 'ज्ञानी' से 'ज्ञान' मिल जाए तो सारा अज्ञान निकल जाए, ऐसा है। जैनों ने कहा है कि 'उपयोग रखो।' और वेदांतों ने कहा है कि 'साक्षीभाव रखो।' ये साक्षीभाव से रहने जाते हैं, लेकिन विवाह में तो नहीं रह पाते! ये सभी तो उपचार कहलाते हैं। जब तक ज्ञानी नहीं मिल जाएँ, तब तक दवाई तो चुपड़नी चाहिए न? उपचार तो करने चाहिए न? और ज्ञानी मिल गए तो काम ही हो गया! भीतर जो बैठे हैं, वे 'शुद्धात्मा' भगवान हैं। उइन्होंने मुझे 'योग' करवा दिया है, इनका व्यापार 'योगक्षेम' कर देने का है। अब इन्होंने आपको योग कर दिया है इसलिए आपकी 'हमसे' भेंट हो गई और अत्यंत दुर्लभ हैं, ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' से भेंट हुई है तो 'ज्ञानीपुरुष' अब आपको 'क्षेम' करवा देंगे। ज्ञानी चाहे सो कर सकते हैं! 'योग' हो गया, मतलब काम हो गया। 'शुद्धात्मा' योग मिलवा देते हैं और वहाँ फिर अक़्ल लड़ाने जाए तो हो चुका न? यह स्वच्छंद रोग तो ऐसा है कि क्रॉनिक हो गया है ! स्वच्छंद मतलब ओवरवाइज़। यदि मुझे दादर आना हो तो पहले उसका ज्ञान होना चाहिए और यदि घर नहीं मिले तो मुझे किसी जानकार से पूछना पड़ेगा, उसी तरह मोक्ष में जाने के लिए किसी जानकार से पूछना पड़ता है। भीम ने तो लोटे को गुरु बनाया था, और 'ॐ नमः शिवाय' ऊपर लिखा तो शिव प्रकट हो गए। यह तो भीम था! उसे तो सभी पर तुरंत अभाव आ जाता था! इसलिए तुझे जिस पर अभाव नहीं होता हो, उसी को गुरु बना और आगे चल। खुद के सिर पर ऊपरी रखकर चलना चाहिए, उससे स्वच्छंद नहीं होता।

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