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आप्तवाणी-२
बचाएँगे? यदि डॉक्टर बचानेवाला होता तो उसकी माँ मर गई, बाप मर गया, उन सब को बचा न ! यह जगत् व्यवस्थित शक्ति के आधार पर चल रहा है, तो आपका व्यवहार भी उसी से चलता रहेगा ।
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अज्ञाशक्ति से जगत् की अधिकरण क्रिया चलती रहती है और क्रमिक मार्ग में वह ठेठ तक रहती है और अंत में जब प्रज्ञाशक्ति उत्पन्न होती है तब अज्ञाशक्ति विदाई ले लेती है और वह प्रज्ञा ही ठेठ मोक्ष तक ले जाती है। यहाँ अक्रम मार्ग में ज्ञान मिलते ही प्रज्ञा उत्पन्न हो जाती है, फिर आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता, प्रज्ञा ही काम करती रहती है यह प्रज्ञा किससे उत्पन्न होती है? साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स के आधार पर! और अगर वैसे एविडेन्स उत्पन्न हो जाएँ तो सिद्ध भगवान में भी प्रज्ञा उत्पन्न हो जाए, लेकिन वहाँ ऐसे एविडेन्स उत्पन्न होते ही नहीं । और यहाँ तो समसरण मार्ग है इसलिए निरंतर संयोगों के धक्के से अज्ञाशक्ति उत्पन्न होती है और यदि 'ज्ञानीपुरुष' का योग मिल जाए तो प्रज्ञाशक्ति उत्पन्न हो जाती है और अज्ञाशक्ति विदाई ले लेती है ।