Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 428
________________ स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? ३९१ __बंध (कर्मबंधन) किससे पड़ता है? अज्ञान से, और मोक्ष किससे होता है? प्रज्ञा से। आत्मा प्राप्त होने के बाद प्रज्ञा उत्पन्न होती है, वह रियल और रिलेटिव दोनों को सँभालती है, अज्ञा क्या कहती है? कि 'मैंने किया, मैंने भोगा,' तब प्रज्ञा क्या कहती है? कि 'मैं कर्ता नही हूँ! उसने गाली दी फिर भी वह कर्ता नहीं है।' प्रज्ञा उत्पन्न होने के बाद राग-द्वेष का निंदन हो जाता है, आत्मा को कुछ भी नहीं करना पड़ता। यह 'अज्ञा' शब्द हमारे भीतर से स्फुरित हुआ है, हमने नया शब्द डाला है। यह तो प्रज्ञा को समझाने के लिए अज्ञा शब्द रखना पड़ा, क्योंकि प्रज्ञा को समझनेवाला ही अज्ञा को जान सकता है। क्रमिक मार्ग में जहाँ पर अहंकार को शुद्ध करते-करते आगे बढ़ना है, वहाँ सब मन से करना पड़ता है, और इस अक्रम मार्ग में प्रज्ञादशा से सब होता है, सबकुछ आत्मा के प्रज्ञा भाग से होता है। अज्ञाभाग से प्रविष्ट हुआ और छुटकारा प्रज्ञाभाग से होता है। यह तो कौन से भाग से प्रवेश पाया, वह समझ में आए तो छूटने का मार्ग मिलता जाता है। जो शक्ति तुझे संसार में ठोकरें खिलाती है उसे पहचान, तो प्रज्ञाशक्ति पहचानी जा सकेगी। अज्ञसंज्ञा-वह चोर्यासी लाख योनियों में भटकानेवाली चीज़ है। कार्यरूप में स्थित अज्ञ दशा से संसार खड़ा होता है और कार्यरूप में स्थित प्रज्ञा से संसार का विलय होता है। आत्मा प्राप्त करने के बाद बुद्धि का आधार टूट जाता है और प्रज्ञाधारी बनते हैं। जब ज्ञान टॉप पर आए, तब प्रज्ञाधारी कहलाते हैं, आत्मज्ञान डायरेक्ट 'हमारे' द्वारा मिलता इन दो शक्तियों में से दूसरी शक्ति, अज्ञाशक्ति खुद ने अंहकार करके खींच ली है, 'मैं करनेवाला हूँ,' कहकर। अब यह अज्ञाशक्ति हर एक की स्वतंत्र होती है, हर एक जीव पर यह लागू होता है और सारी अज्ञाशक्तियाँ इकट्ठी होती है तब व्यवस्थित शक्ति उत्पन्न होती है। हर एक में अज्ञाशक्ति होती है, हर एक के कपाल पर रेग्युलेटर ऑफ द वर्ल्ड है ही, इसलिए साथ-साथ सब काम होता रहेगा, यानी कि इसमें आपको 'खुद' कुछ भी करना पड़े, ऐसा नहीं है। व्यवहार अपने आप चलता रहेगा। मनुष्य की आँख में लाइट किस कारण से रहती है और किस कारण से वह चली जाती है, यह कौन जानता है? ये डॉक्टर तो निमित्त हैं, वे क्या

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