Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 411
________________ ३७४ आप्तवाणी-२ ने कृष्ण भगवान से तार जोड़ा! और जाओ, 'हमें' याद करके, हमारा नाम लेकर कृष्ण भगवान से रोज़ सुबह पाँच बार ऐसे कहना, फिर यदि चिंता हो तो हमारे पास आना। यदि अपनी नीयत साफ होगी, कृष्ण के सच्चे भक्त हैं तो फिर किसलिए चिंता होगी? कृष्ण से हमें साफ-साफ कहने में क्या परेशानी है? सच्ची भावनावाला तो भगवान को भी गालियाँ दे सकता है। भगवान को कौन गाली दे सकता है? जो सच्चा पुरुष हो वही भगवान को गाली दे सकता है। इसमें कहाँ डरने की बात है? भगवान से कह सकते हैं कि, 'हमें चिंता नहीं करनी है, हमारी मर्जी बिल्कुल आपकी आज्ञा में ही रहने की है। फिर भी चिंता हो जाती है तो हम क्या करें? हम तो आपकी शरण में रहते हैं और आपको डाँटेंगे भी सही।' ऐसा हमने एक व्यक्ति को सिखाया था, वह भाई तो पक्के निकले। आठ दिनों तक रोज़ ऐसा किया और नौंवे दिन आकर कहने लगे कि, 'दादा, मुझ पर भगवान प्रसन्न हो गए, मुझे एक भी चिंता नहीं हुई।' 'ज्ञानीपुरुष' के वचन में वचनबल होता है। उसका यदि पालन करेगा, तब तो उसका काम ही हो जाएगा। एक बहन औरंगाबाद में आई थी, उन्होंने हमारे दर्शन किए, दो मिनट ‘श्री कृष्ण शरणं मम' बोलीं और तुरंत ही उन्हें साक्षात् कृष्ण भगवान के दर्शन हुए! कृष्ण को गोपीभाव से भजना, लेकिन गोपीभाव रहेगा कैसे? कृष्ण को पहचाने बिना गोपी भी कैसे बना जाए और भाव भी कैसे आए? कृष्ण भगवान के दो स्वरूप हैं - एक बाल स्वरूप और दूसरा योगेश्वर स्वरूप। योगेश्वर कृष्ण को कोई पहचानता ही नहीं, इसलिए लोग बालकृष्ण की भक्ति में पड़ गए। उसमें प्रसाद, खिलौने, झूला वगैरह होता है, लेकिन क्या उससे कुछ हो पाएगा? पुष्टिधर्म, वह बालमंदिर कहलाता है, यह तो बालकृष्ण का धर्म है, खरा धर्म तो योगेश्वर कृष्ण का है। बालकृष्ण धर्म वह तो बालमंदिर है, उसमें जहाँ तक स्लेट की लंबाई पहुँचे, वहाँ तक एक से दस तक लिखना है। धर्म तो योगेश्वर कृष्णवाला होना चाहिए। योगेश्वर कृष्णवाला धर्म, वह ज्ञानमंदिर कहलाता है। मोक्ष के लिए योगेश्वर को भजो और संसार में रहना हो तो बालकृष्ण को भजो। कृष्ण तो नर

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