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आप्तवाणी-२
हैं, वेद तीन गुणों को ही प्रकाशित करते हैं ।' कृष्ण भगवान ने 'नेमीनाथ' से मिलने के बाद गीता कही थी, उससे पहले वे वेदांती थे। उन्होंने गीता में कहा, 'त्रैगुण्य विषयो वेदो निस्त्रय गुण्यो भवार्जुन, ' यह ग़ज़ब का वाक्य कृष्ण ने कह दिया है! 'आत्मा जानने के लिए वेदांत से परे जाना, कह दिया है! उन्होंने ऐसा कहा कि, 'हे अर्जुन! आत्मा जानने के लिए तू त्रिगुणात्मक से परे हो ।' त्रिगुणात्मक कौन-कौन से ? सत्व, रज और तम । वेद इन्हीं तीन गुणवाले हैं, इसलिए तू उनसे परे हो जाएगा तभी तेरा काम होगा। और फिर ये तीन गुण द्वंद्व हैं, इसलिए तू त्रिगुणात्मक से परे हो जा और आत्मा को समझ ! आत्मा जानने के लिए कृष्ण ने वेदांत से बाहर जाने को कहा है, लेकिन लोग समझते नहीं है । चारों ही वेद पूरे होने के बाद वेद इटसेल्फ क्या कहते हैं? दिस इज़ नोट देट, दिस इज़ नोट देट, तू जिस आत्मा को ढूँढ रहा है वह इसमें नहीं है । 'न इति, न इति,' इसलिए तुझे यदि आत्मा जानना हो तो गो टु ज्ञानी ।
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कृष्ण भगवान ने कहा है कि, 'यह जगत् भगवान ने नहीं बनाया है, लेकिन स्वभाविक रूप से बन गया है ! '
सच्चा सन्यास और निष्काम कर्म
कृष्ण भगवान ने मोक्ष के दो रास्ते बताए, एक सन्यास और दूसरा निष्काम योग ।
सन्यास शब्द बहुत ऊँचा है । लेकिन कोई उसे समझता नहीं है। लोग तो जो भी भगवा वस्त्र पहनते हैं, उन्हें सन्यासी कहने लगे ! सन्यास मतलब न्यास लेना, मन-वचन-काया में से, सब तरफ से आत्मा खींचकर आत्मा में रख दे, उसे सन्यास कहते हैं । जब तक 'ज्ञानीपुरुष' आत्मा का ज्ञान नहीं देते, तब तक सन्यासी बन ही नहीं सकता। जो खेत में गया है, वह घर पर नहीं हो सकता और घर में है, वह खेत में नहीं हो सकता। उसी प्रकार जो धर्म सन्यासी है, वह निरंतर आत्मा में ही रहता है।
निष्काम योग तो लोग कहते हैं कि, 'काम कर, लेकिन फल की आशा मत रखना।' अरे, फल की आशा रखे बगैर तो घर से बाहर जीवजंतु