Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 414
________________ योगेश्वर श्री कृष्ण ३७७ प्रश्नकर्ता : नैष्ठिक ब्रह्मचारी मतलब क्या? दादाश्री : जिनके भाव में निरंतर ब्रह्मचर्य की ही निष्ठा है, वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहलाते हैं ! डिस्चार्ज हो रहा अब्रह्मचर्य है और चार्ज हो रहा है अखंड ब्रह्मचर्य! कृष्ण भगवान की सोलह सौ रानियाँ थीं, फिर भी वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। ऐसा कैसे हैं, वह आपको समझाता हूँ। एक व्यक्ति चोरी करता है, लेकिन अंदर उसके भाव में निरंतर ऐसा रहा करता है कि, 'चोरी नहीं करनी है, तो वह नैष्ठिक अचौर्य कहलाता है। 'क्या चार्ज हो रहा है?' वही उसका हिसाब है! एक व्यक्ति दान देता है और मन में रहता है कि, 'कैसे इन लोगों से छीन लूँ,' तो वह दान नहीं माना जाएगा। इन इन्द्रियों से जो प्रत्यक्ष दिखता है, नया बाँधने के लिए उसे नहीं माना जाता, लेकिन अंदर नया हिसाब क्या बाँध रहा है, जो चार्ज हो रहा है, वह माना जाता है! प्रश्नकर्ता : तो फिर कृष्ण भगवान को चारित्रवान क्यों कहा है? दादाश्री : वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। बल्कि, उनके चारित्र को दुष्चारित्र कहने से निंदा हुई है। कृष्ण तो वासुदेव थे। वासुदेव मतलब क्या? कि जो सभी चीज़ों के भोक्ता, लेकिन मोक्ष के अधिकारी होते हैं, ग़ज़ब के पुरुष होते हैं! सच्चा ब्रह्मसंबंध प्रश्नकर्ता : यह जो ब्रह्मसंबंध करवाते हैं वह क्या है? दादाश्री : जब ब्रह्मरस टपकता है, तब लगनी लगती है और तब ब्रह्मसंबंध जुड़ता है। खुद का स्वरूप समझ में आए उसी को खरा ब्रह्मसंबंध हुआ कहते हैं। एक क्षण भी स्वरूप भूलें नहीं, वही ब्रह्मसंबंध है, उसके बाद एक भी चिंता नहीं होती। हम यह 'स्वरूप का ज्ञान' देते हैं, तब फिर आपको निरंतर शुद्धात्मा का लक्ष्य रहता है। उसे, आपने खरा ब्रह्मसंबंध प्राप्त किया, कहा जाएगा! बाकी, कंठी तो सामान्य मर्यादा कहलाती है। आज खरा ब्रह्मसंबंध तो एक भी मार्ग में रहा ही नहीं है। अरे, जिनके खुद के ही ब्रह्मसंबंध का ठिकाना नहीं हो वे दूसरों का ब्रह्मसंबंध किस

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