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आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान
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आजकल जो प्रतिक्रमण किए जाते हैं, वे तो अधिकतर द्रव्य प्रतिक्रमण होते हैं। द्रव्य प्रतिक्रमण मतलब कपड़े वॉशआउट हो गए, लेकिन खुद का कुछ भी नहीं हुआ! यह चंदूलाल दस बार बोले कि, 'चंदूलाल, दाल-चावल खा ले, चंदूलाल, दाल-चावल खा ले।' तो क्या भोजन हो गया? ना, उससे कुछ भी नहीं हुआ। द्रव्य प्रतिक्रमण किसे कहते हैं, वह मैं समझाता हूँ। भगवान महावीर पाँच सौ एक का साबुन लाए
थे, वह बारह इंच लंबा था, दो इंच चौड़ा था और एक इंच मोटा था। फिर भगवान मैले कपड़े लाए, कपड़ों को उन्होंने पानी में डालने के बाद उनमें साबुन लगाया, फिर पानी में धोए।' भगवान ने उनके कपड़ों का मैल जिस तरीके से धोया था उस तरीके को, साल में एक घंटे बैठकर तू गाता रहे तो उससे तेरे कपड़ों का मैल कैसे धुलेगा? अरे, भगवान का मैल अलग, उनका धोने का तरीक़ा अलग, तेरा मैल अलग और तेरा वह मैल धोने का तरीक़ा भी अलग होगा। भगवान के तरीके को तू गाता रहेगा, उससे से तू कितना साफ हो पाएगा? तू तो घानी के बैल की तरह घानी में ही रहा! तेरा प्रतिक्रमण तो, जहाँ-जहाँ तुझसे अतिक्रमण हुआ हो, वहाँवहाँ ऑन द मोमेन्ट करेगा, तभी वह अतिक्रमण धुलेगा। यह तो, सालछह महीने में या महीने में करता है तो क्या याद रहेगा? इस काल के लोग तो ऐसी विचित्र दशा के हो चुके हैं कि एक घड़ी पहले क्या खाया वह भी वह भूल जाता है, तो इस अतिक्रमण को तो तू क्या याद रखेगा? प्रतिक्रमण तो उसी क्षण होना चाहिए, उधार नहीं चलेगा, कैश चाहिए!
कपड़ों पर चाय गिर जाए, तो कैसे तुरंत ही धोने जाता है! और जब तुझ पर, 'खुद' पर मैल चढ़ता है तब हाथ जोड़कर बैठा रहता है? हाँ, चाय गिरना वह अपने हाथ की बात नहीं है, लेकिन उसे धो तो देना ही चाहिए न, वैसे ही जब अतिक्रमण का मैल चढ़े, तब उसे भी तुरंत धो ही देना चाहिए न!
हम तो कितने ही जन्मों से प्रतिक्रमण करते-करते आए हैं, तब जाकर अभी कपड़े साफ हुए हैं और आपके भी कपड़े साफ कर देते हैं!
दो प्रकार के आलोचना-प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान इस अनुसार