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आप्तवाणी-२
हैं- एक तो व्यवहार के, ये सभी साधु वगैरह करते हैं, उससे गाँठों की प्रगाढ़ता कम होती है, लेकिन भूल होने पर तुरंत ही करे तो और भी अधिक ऊँचा फल मिलता है। दूसरे, निश्चय के जो कि अपने स्वरूपज्ञान प्राप्त महात्मा करते हैं, वे।।
अहो! गौतम स्वामी का प्रतिक्रमण भगवान के समय में क्या ऐसे प्रतिक्रमण होते थे? भगवान के समय की तो बात ही क्या! भगवान के श्रावक, आनंद श्रावक को अवधिज्ञान प्रकट हुआ था। गौतम स्वामी वहाँ पहुँचे, तब आनंद श्रावक ने उनसे कहा कि, 'मुझे अवधिज्ञान प्रकट हुआ है!'
तब गौतम स्वामी को वह सच नहीं लगा। उन्होंने आनंद श्रावक से कहा कि, 'यह झूठा विधान है, इसीलिए आप उसका प्रतिक्रमण करो।'
आनंद श्रावक ने कहा, 'सच्चे का करूँ या झूठे का?' गौतम स्वामी ने कहा, 'प्रतिक्रमण झूठे का ही करना होता है, सच्चे का नहीं।' तब आनंद श्रावक ने कहा, 'यदि सच्चे का प्रतिक्रमण नहीं होता तो मैं प्रतिक्रमण करने का अधिकारी नहीं हूँ।' तब गौतम स्वामी चले गए, जाकर भगवान महावीर स्वामी से पूछने लगे, 'हे भगवन! आनंद श्रावक प्रतिक्रमण के अधिकारी हैं या नहीं?' भगवान ने कहा, 'गौतम! आनंद सच्चा है, उसे अवधिज्ञान प्रकट हुआ है, इसलिए आप जाओ और आनंद श्रावक के प्रतिक्रमण कर आओ।' तब गौतम स्वामी दौड़ते हुए आनंद श्रावक के पास पहुँच गए और प्रतिक्रमण किया!
व्यवहार शोभा नहीं दे ऐसा हो, तो वहाँ पर प्रतिक्रमण करना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : दादा, हम जैन हैं इसलिए सामायिक, प्रतिक्रमण जानते ज़रूर हैं, लेकिन वे कर नहीं सकते, ऐसा क्यों होता होगा?
दादाश्री : इस दुनिया में जिसका पालन किया जा सके, जो किया जा सके, वह सब ज्ञान कहलाता है और जिसका पालन नहीं कर पाते, जो कर नहीं पाते, वह अज्ञान है। 'सामायिक हम समझते हैं फिर भी कर