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आप्तवाणी-२
संसार में जो कुछ भी होता है, वह क्रमण है। जब तक वह साहजिक प्रकार से होता है तब तक क्रमण है, लेकिन यदि एक्सेस हो जाए तो वह अतिक्रमण कहलाता है और यदि छूटना हो तो जिसके प्रति अतिक्रमण हुआ हो, उसका प्रतिक्रमण करना ही पड़ेगा, यानी कि धोना पड़ेगा, तो साफ हो जाएगा।
पूर्व में चित्रण किया था कि, 'फलाने को चार धौल दे देनी है।' इसलिए इस जन्म में जब वह रूपक में आता है, तब चार धौल लगा देता है। उसे अतिक्रमण कहते हैं। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। सामनेवाले के शुद्धात्मा को याद करके, उसके निमित्त से प्रतिक्रमण करने चाहिए। भगवान ने कहा है कि, 'अतिक्रमण का प्रतिक्रमण करोगे तभी मोक्ष में जा पाओगे।'
कोई खराब आचार हुआ, वह अतिक्रमण कहलाता है। जो खराब आचार हुआ, वह तो दाग़ कहलाता है, वह मन में काटता रहेगा, उसे धोने के लिए प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे। किसी के भी लिए अतिक्रमण हुए हों तो पूरा दिन उसके लिए प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे, तभी खुद छूट सकेगा। यदि दोनों ही आमने-सामने प्रतिक्रमण करेंगे तो जल्दी छूटा जा सकेगा। पाँच हज़ार बार आप प्रतिक्रमण करो और पाँच हज़ार बार सामनेवाला प्रतिक्रमण करे तो जल्दी अंत आ जाएगा, लेकिन यदि सामनेवाला नहीं करे और तुझे छूटना ही हो तो दस हज़ार बार प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे, तो तू खुद तो छूटेगा, लेकिन वन साइडेड प्रतिक्रमण होने से खुद के लिए सामनेवाले को दुःख रहेगा ही। फिर भी इस प्रतिक्रमण से तो आपके प्रति सामनेवाले के भाव भी बदल जाएँगे, खुद को भी अच्छे भाव होंगे और सामनेवाले को भी अच्छे भाव होंगे। क्योंकि प्रतिक्रमण में तो इतनी अधिक शक्ति है कि बाघ, कुत्ते जैसा बन जाता है! प्रतिक्रमण कब काम आता है? जब कुछ उल्टे परिणाम खड़े हो जाएँ, तभी काम आता है। बाघ अपनी गुफा में हो और तु अपने घर पर हो, तब तू प्रतिक्रमण करे तो बहुत काम नहीं आएँगे, लेकिन अगर बाघ सामने 'खाऊँ, खाऊँ' कर रहा हो और उस समय प्रतिक्रमण करेगा, तो यथार्थ फल देंगे! बाघ तुरंत ही बकरी जैसा हो जाएगा!