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आप्तवाणी-२
प्रश्नकर्ता : इच्छा नहीं हो और संयोगवश चोरी हो जाए तो?
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दादाश्री : संयोगवश चोरी हो जाए, तो उसके लिए खास गुनहगार नहीं माना जाता और संयोगवश हुआ उसका जो बाह्यफल उसे मिला, वह इनाम कहलाता है, बाह्यफल तो मिलता है । कोई बहुत पुण्यशाली हो, तो उसे बाह्यफल नहीं भी मिलता वर्ना पूरी जिंदगी चोरी नहीं की हो, लेकिन संयोगवश एकाध बार चोरी करे तो भी बेचारा पकड़ा जाता है! जब बाह्यफल मिलता है, तब ऐसा साबित हो जाता है कि नीयत बहुत खराब थी! फिर भी अगर संयोगाधीन कोई किसी भी प्रकार का गुनाह करता है, तो उसे हम गुनहगार मानते ही नहीं हैं। यह संयोगाधीन है और जान-बूझकर किया हुआ तो स्वभाव में है । स्वभाव में और संयोगाधीन में बहुत फर्क है। जिसके स्वभाव में चोरी करना है, उसकी तो दृष्टि ही उस तरफ जाती रहती है, घूमती रहती है और कहीं से भी उठाए बगैर रहता ही नहीं । अपने साथ बातें कर रहा हो और उसकी दृष्टि 'कहाँ से उठाऊँ' उसी में होती है, जबकि संयोगाधीन गुनहगार नहीं कहलाता । संयोगाधीन तो राजा को भी चोरी करनी पड़ सकती है । व्रत और महाव्रत समझा तू? सफेद कपड़े पहन लिए, तो व्रत नहीं कहलाता । मन-वचन-काया से चोरी नहीं की उसे अस्तेय महाव्रत कहा जाता है । फिर वह साधु हो या गृहस्थ, त्यागी हो या गृहस्थ लिंग हो, वे सभी संसारी ही हैं।
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अच्छी ऊँची जाति में चोरी नहीं होती, दगा नहीं देते लेकिन ये लोग तो, यों ही छोटी सी बात में भी बहुत झूठ बोलते हैं लेकिन बड़ी बातों में नहीं बोलते होंगे, लेकिन अभी तो सारा बिगड़ गया है न? महाव्रत भी गल गए हैं, सड़ गए हैं ! अणुव्रत भी सड़ गए हैं! थे तो अच्छे, लेकिन सड़ गए तो क्या हो सकता है ? ! फिर भी वापस यह संयोगाधीन है। अभी पूरा हिन्दुस्तान ही बिगड़ गया है न! वर्ना हिन्दुस्तान ऐसा नहीं होना चाहिए और यह बिगड़ गया है, वह भी संयोगाधीन बिगड़ा है, इसलिए गुनहगार नहीं माना जाएगा।