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अणुव्रत-महाव्रत
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नहीं बोला जा सके। यह तो शिष्य महाराज से झूठ बोलता है और महाराज भी बोलते हैं। तो फिर सत्य का अणुव्रत कहाँ रहा? महाव्रत तो गए वीतरागों के पास, लेकिन अणुव्रत भी कहाँ रहे हैं आज? वीतराग कहते हैं कि, 'तेरा नुकसान तुझे होगा, हमें तो नुकसान होनेवाला है नहीं।' वीतरागों को नुकसान होता है क्या? नुकसान यदि होता है तो उनका होता है जो भगवान का कहा नहीं मानते। सभी के मुँह पर अरंडी का तेल नहीं दिखता? आनंद गया कहाँ? आत्मा है तो आनंद भी होना चाहिए न?
___यह हम किसी की निंदा नहीं कर रहे हैं, अपने यहाँ पर निंदा है ही नहीं। हम तो सही बात समझा रहे हैं, असल हकीकत समझा रहे हैं। जो कोई भी मेरे पास से जाने और कहे कि, 'आपकी बात सच है।' तब तो उसका काम निकल जाएगा, मोक्षमार्ग जल्दी से मिल जाएगा! लेकिन यदि वह कहे कि, 'आपकी यह बात गलत है।' तब फिर तेरा भटकना तो है ही न! हमें क्या? तुझे यदि चार गालियाँ देनी हों तो चार गालियाँ दे, हमें हर्ज नहीं है। क्योंकि तुझे नहीं पुसाए तो बोल लेकिन उसमें हर्ज नहीं है अपने को, लेकिन हमें सही बात कहनी है कि, 'यह जोखिमदारी तू ले बैठा है। हे भाई, तू आगे जाएगा तो तू गहरी खाई में लुढ़क जाएगा,' ऐसे हम सावधान कर रहे हैं। अब तुझे यदि अनुकूल आए तो सुन और नहीं तो चार गालियाँ देकर आगे चलता बन!
अब वीतराग ऐसा नहीं कहते थे! हम तो खटपटिया हैं इसलिए ऐसा कहते हैं कि, 'भाई, आगे खाई में लुढ़क जाएगा।' अब वीतराग हमें कहते हैं कि, 'आपको यह क्या पीड़ा है?' तो हमें ऐसा होता है कि, 'अरे, ये लुढ़क गए तो फिर इनका कब ठिकाना पड़ेगा?' हमारा भाव ही ऐसा है, इच्छा ही ऐसी हो गई है कि कोई लुढ़कना मत और इसमें से कुछ हल निकालो। हमें मोक्षमार्ग मिल गया है तो हम तुम्हें साथ में ले जाएँगे, तुम्हारे साथ आधा घंटा बैठेंगे लेकिन फिर तुम्हें हम वापस साथ लेकर जाएँगे।
__ भगवान ने क्या कहा है कि, 'पूरा जगत् मोक्षमार्ग की तरफ ही बढ़ रहा है!' यानी कि किसी उल्टे मार्ग पर नहीं जा रहा है लेकिन मोक्षमार्ग पर जाने के लिए यानी कि अहमदाबाद जाने के लिए यहाँ मुंबई से बैंगलोर