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आप्तवाणी-२
को ही खींचते रहते हैं । इस चित्त से तो संसार उत्पन्न हुआ है । लोगों के चित्त सब ओर बिखर चुके हैं ।
प्रश्नकर्ता : चित्त किस तरह उत्पन्न हुआ?
दादाश्री : बुद्धि जो प्रकाश देती है, वह ज्ञेय को देखती है, वह अशुद्ध चित्त है, वह (चित्त) ज्ञेयाकार होकर ज्ञेय को देखता है । वह घर पर टेबल, कुर्सी उन सभी को एक्ज़ेक्ट देख सकता है, लेकिन वह शुद्धात्मा को नहीं देख सकता ।
प्रश्नकर्ता : चित्त क्या कर्म के अधीन है?
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दादाश्री : हाँ, लेकिन यदि चित्त अटक (रिसट्रिक्ट) जाए तो काम हो जाएगा, लेकिन यदि चित्त चिपक गया तो फँस जाएगा। भले ही कितना भी मन को मोड़ने का प्रयत्न करे, लेकिन चित्त वहीं चिपका रहता है। 'अनंत चित्त' तो हैं ही, उनमें से अनेक में आना, वह बहुत मुश्किल बात है और एक चित्त हो जाए तो काम हो जाए ! अपना 'ज्ञान' है, इस वजह से एक चित्त की तरफ आ पाते हैं।
'अनंत चित्त' में से 'अनेक चित्त' में का मतलब क्या है कि हम गिन सकें कि चित्त यहाँ यहाँ पर गया। ये अड़तालीस मिनट की सामायिक का मतलब क्या है कि उसके बाद चित्त की स्टेज बदल जाती है। आठ मिनट से लेकर अड़तालीस मिनट तक चित्त बंध जाता है। आठ मिनट से चित्त बंधन शुरू होता है। दूध से आइस्क्रीम बनती है तो पहले दूध जमता है, उससे आइस्क्रीम जमने की शुरूआत होती है और फिर आइस्क्रीम बन जाती है, जम जाती है । ये 'अनंत' में से ' अनेक' में आए और यदि इन ‘दादा' का स्वप्न आ जाए मतलब कि चित्त की 'रील' आ जाए तो काम ही हो जाए। और तब तो इन दादा के ग़ज़ब के दर्शन हो जाते हैं।
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शुद्ध चित्त अशुद्ध चित्त
प्रश्नकर्ता : चित्त को निज घर में किस तरह से मोड़ा जाए?
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