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आप्तवाणी-२
वीतराग का आत्मज्ञान यदि सहजरूप से हुआ हो, सच्चा ज्ञान हुआ हो तो घमंड नहीं चढ़ता है। वीतरागों का दिया हुआ आत्मा, यदि सिर्फ वही प्रकट हो जाए तो घमंड नहीं चढ़ता! बाकी दूसरों के दिए हुए आत्मा से तो घमंड चढ़ जाता है और 'मैं हूँ, मैं हूँ' का कैफ़ रहा करता है, वह रात को नींद में भी नहीं उतरता! इसलिए भगवान ने कहा है कि, 'जिस ज्ञान से घमंड चढ़ जाए, जिस शास्त्र से घमंड चढ़ जाए, वह अज्ञान है।' हर एक व्यक्ति का आत्मज्ञान अलग-अलग होता है, लेकिन मात्र वीतराग भगवान का आत्मज्ञान ही ऐसा है जो कैफ़ नहीं चढ़ाता। वीतराग की वाणी कैफ़ उतार देती है। ये तो कहते हैं 'ऐसा करो, वैसा करो, वैराग्य करो, तप करो, त्याग करो।' उससे तो निरा कैफ़ चढ़ता है। वह तो देवगति के लिए काम का है, मोक्ष के लिए नहीं। हमारी वाणी से कैफ़ उतरता है
और हमारे चरण का अंगूठा, वह वर्ल्ड में इगोइज़म को विलय करने का एक मात्र सॉल्वेन्ट है।
प्रश्नकर्ता : इगोइज़म विलय हो सकता है?
दादाश्री : हाँ, हमारी वाणी ही ऐसी है कि जिससे इगोइज़म का विलय हो जाता है। इस वाणी से तो क्रोध-मान-माया-लोभ सभी विलय हो जाते हैं। अहमदाबाद में एक सेठ आए थे, उन्होंने कहा कि, 'मेरा क्रोध ले लीजिए।' तो ले लिया हमने! 'ज्ञानीपुरुष' के पास सभी चीजें होती हैं, जिससे सभी कुछ विलय हो जाता है।
ये क्रोध-मान-माया-लोभ सब किससे खड़े हैं? किस आधार पर खड़े हैं? लोग कहते हैं न कि, 'मुझे गुस्सा आ रहा है।' अब यह 'मुझे हो रहा है, ऐसे आधार देता है, इसलिए ये चीज़े टिकी रहती हैं। 'ज्ञानीपुरुष' आधार हटा देते हैं, तो ये सब विलय हो जाते हैं। धीरे-धीरे क्रोध को कम करने जाएँ तो हो सके ऐसा नहीं है और कदाचित् क्रोध कम हो भी जाए तो वापस दूसरी तरफ मान बढ़ जाता है! यानी यह तो कैसा है कि खुद का भान नाम मात्र को भी नहीं है और सबकुछ सिर पर लेकर घूमते हैं! यह तो 'खुद के' भान के बगैर ही पूरा व्यवहार निभ रहा है, थोड़ा सा भी भान नहीं है।