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अहंकार
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सुखी होने की तीन चाबियाँ शोर्टकट में कहना हो तो आरोपित भाव, 'मैं चंदूलाल हूँ,' वह इगोइज़म भाव है। यदि सांसारिक सुख चाहिए तो इस इगोइज़म का पॉज़िटिव उपयोग कर। इसमें नेगेटिव मत डालना और तुझे दुःख ही चाहिए तो नेगेटिव अहंकार रखना और सुख-दुःख मिक्सचर चाहिए तो दोनों इकट्ठे कर! और यदि तुझे मोक्ष में ही जाना है तो आरोपित भाव से मुक्त हो जा, स्वभाव भाव में आ जा! इन तीन वाक्यों पर पूरा वर्ल्ड चल रहा है। ये तीन वाक्य समझ ले और उनके अनुसार करना शुरू कर दे तो सभी धर्म उसमें आ गए!
ये तीन वाक्य हैं, (१) सुखी होने के लिए पॉज़िटिव अहंकार। किसी को किंचित् मात्र भी अपने से दु:ख नहीं हो, ऐसा अहंकार, वह पॉज़िटिव इगोइज़म है (२) दुःखी होने के लिए नेगेटिव अहंकार। खुद का थोड़ा सा भी अपमान हो जाए तो मन में बैर रखता है और जाकर पुलिसवाले से कह आता है, 'उसने घर में तेल के डिब्बे जमा करके रखे हैं।' अरे, तेरा बैर है, इसलिए ऐसा किया? उसे किसलिए पुलिस में पकड़वाया? बैर का बदला लेने के लिए! यह नेगेटिव अहंकार (३) मोक्ष में जाना हो तो 'आरोपित भाव' से मुक्त हो जा।
नेगेटिव अहंकार बहुत बुरा अहंकार कहलाता है। किसी को जेल में डलवाने को घमता है, तभी से खद के लिए जेल खडी हो गई! अपने को कैसा होना चाहिए कि निमित्त तो, जो भी आए उसे जमा कर लेना चाहिए, क्योंकि अपनी पिछली भूलें हैं, इसीलिए हमें कोई गालियाँ दें तो हमें जमा कर लेनी चाहिए, जमा करने के बाद फिर से उसके साथ व्यापार मत करना। यदि तुझे सामनेवाले की गाली पुसाती हो तो व्यापार जारी रखना
और सामने दूसरी दो दे देना, लेकिन यदि सामनेवाले की गाली नहीं पुसाती हो तो तुझे उसके साथ व्यापार बंद कर देना चाहिए।
तुझे अगर ऐसा लगता है कि 'आओ साहब, आओ साहब' कहने से उसके प्रति स्पंदन अच्छे पड़ेंगे तो वैसा करना। आप्तवाणी-१ में लिखा