________________
आप्तवाणी-२
ऐसा क्या है कि ऐसे पागलपन कर रहा है? हे घनचक्कर अहंकार, तू तो पागल है!' उसे ऐसा कह दें, तो वह समझ जाएगा ।
३४२
यह तो कहेगा, ‘ट्ठट्ठमैं कुछ हूँ, ' लेकिन किसमें है तू? उस अहंकार के प्रताप से तो दुःखी हुआ है। हम देखने जाएँ न पहला आणा(गौने के बाद जब बेटी पहली बार मायके आती है), दूसरा आणा, और आखिर में बारहवाँ आणा देखने जाएँ तो समझ में आ जाता है कि सिर्फ इस अहंकार ने ही दुःख दिया है! यह तो पागल अहंकार कहलाता है। जिसे लोग एक्सेप्ट नहीं करते और अहंकार खुद 'मैं कुछ हूँ' ऐसा मान बैठता है, वह पागल अहंकार कहलाता है, कुरूप अहंकार कहलाता है । चक्रवर्ती में अहंकार होता है, लेकिन मोड़ो वैसे मुड़ सकता है। लोग उस अहंकार को मान्य करते हैं, वह सुंदर अहंकार कहलाता है, और यह तो सिर्फ पागल ही । इस पागल अहंकार से हम पूछें कि, 'आप कौन से कोने में शांति से सोए पड़े थे? ऐसा दुनिया में कौन है कि जो आपसे कहे कि, 'आओ, आओ, आपके बिना तो अच्छा नहीं लगता!' लेकिन इसे तो लोग कहेंगे कि, 'आपसे तो, पहले जो उजाला था, वह भी अंधेरा हो गया है।' ऐसे अपमान खाए हैं! अपमान का अंत ही नहीं आए इतने अपमान हुए हैं ! इस अहंकार का क्या करना है? यह तो कुरूप अहंकार है, इसका क्या रक्षण करना? इसका क्या पक्ष लेना ?
अहंकार तो सुंदर होना चाहिए, लोगों को पसंद आए वैसा होना चाहिए, मोड़ो वैसे मुड़ जाना चाहिए । इस अहंकार से पूछें कि, 'आपका बहीखाता दिखाओ कि आपको कहाँ पर मान मिला है? कहाँ-कहाँ अपमान मिले हैं? किस-किस तरह का सुख दिया? लोगों में आपकी कहाँ-कहाँ क़ीमत थी?' भाई के पास, बाप के पास यदि क़ीमत देखने जाएँ न तो चार आने भी क़ीमत नहीं होती ! ' आप किसी के हृदय में नहीं बैठे हैं, ' चार लोगों के हृदय में बैठे होते, तो भी अच्छा था। तो वह अहंकार पागल नहीं कहलाता, सुंदर कहलाता है। यह तो जहाँ जाए वहाँ पर हर कोई ‘यह जाए तो अच्छा' ऐसा मन में रखते हैं, वही कुरूप अहंकार! कोई मुँह पर साफ-साफ नहीं बोलता । मन में कहेंगे कि 'हमें क्या? खुद अपने पाप