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आप्तवाणी-२
'अक्रम ज्ञानी' का मतलब क्या? कि अहंकार एकदम सुंदर होता है, कच्ची बस्ती में भी जाकर बैठते हैं और आपके साथ भी बैठते हैं, लेकिन कहीं भी कुरूप नहीं दिखते! सुंदर ही दिखते हैं ! क्रमिक मार्ग' के ज्ञानी तो जो खुद से नीचेवाले होते हैं, उनके वहाँ नहीं जाते। कहते हैं, 'मैं अपना कर लूँगा, लेकिन वहाँ नहीं जाऊँगा।' अहंकार ऐसा कुरूप होता है।
अपने को तो यही देखना है कि अहंकार सुंदर लगता है न! 'दादा' को यहाँ पर आना हो तब भी उनका अहंकार कितना सुंदर दिखता है ! अपना अहंकार, 'उस' अहंकार जैसा सुंदर दिखना चाहिए, तब दशा कुछ और ही होगी।
क्रम-अक्रम में अहंकार
क्रमिक मार्ग क्या है? तो यह कि, 'अहंकार को शुद्ध करो।' अहंकार विभाविक हो चुका है, उसे शुद्ध करना है।' सीढ़ी दर सीढ़ी उस अहंकार को शुद्ध करते हुए जाना है। और जब संपूर्ण शुद्ध हो जाएगा, तब कुछ काम होगा। विभाविक अहंकार में मान आता है, दंभ आता है, घमंड आता है, ये उसके प्रकार हैं। वह करता है सौ रुपये की नौकरी, लेकिन फिर लंबा कोट पहनकर सेठ बनकर घूमता है, तो लोग कहते हैं, 'दंभी की तरह घूम रहा है।' यह कैसा है? सियार बाघ की खाल पहनकर घूमे, तो वह दंभी कहलाता है। जो घमंडी होता है, वह तो किसी को कुछ मानता ही नहीं। हर चीज़ में कहता है, उसमें क्या बात है? क्या है वह?' ऐसे सभी बात का घमंड रखता है और घर पर पत्नी से पूछे तो कहेगी कि, 'उनमें तो ज़रा भी बरकत नहीं है।' विभाविक अहंकार में तो तरह-तरह के अहंकार हैं। उन सभी को धोते रहना पड़ेगा। क्रमिक मार्ग में बहुत मुश्किलें आती हैं और यदि रास्ते में केन्टीनवाला मिल जाए तो ग़ज़ब ही हो जाए। अपना अक्रम मार्ग ऐसा जोखिमवाला मार्ग नहीं है, सिक्युरिटीवाला मार्ग है, भले ही केन्टीनवाला सामने आए, लेकिन वही घबरा जाएगा, हमें उससे कोई परेशानी नहीं आएगी!
यहाँ अक्रम मार्ग में जो अहंकार रहता है वह निकाली अहंकार है,