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अहंकार यदि ट्रेन रुक जाए तब कोई पागल बोलता है, 'रेल्वेवाले नालायक हैं, डिसमिस कर देना चाहिए सभी को।' अरे, यह तू किसे बोल रहा है?! नौकरीवाले तो वीतराग होते हैं (!) और ट्रेन भी वीतराग होती है(!) लेकिन अहंकार अपना रोल निभाए बगैर रहता ही नहीं न! हम सब इस नासमझी में से छूट गए! बाहर तो नासमझी का तूफ़ान चला है। यदि गटर में पानी भर गया हो, तो सफाईवालों को न जाने कितनी गालियाँ देता है, कि 'गटर के ढक्कन नहीं खोलते और साफ नहीं करते।'
कहीं से घर पर दाल लाया हो और गले नहीं, तो व्यापारी को गालियाँ देता है और याद आ जाए तो किसान को भी गालियाँ देता है, ऐसे कितना ही बोल देता है। यदि उसे कहें कि, 'पड़ोसी से पूछकर आ, तो उसकी दाल गल चुकी होती है!' लेकिन ऐसा अटैक करने का स्वभाव हो गया है न! घर पर अच्छा भोजन बनाया हो तो सभी के घर जाकर कह आता है, वह अहंकार है। यह जो सभी पर अटैक करता है, वह भी अहंकार है। यह अहंकार तो बोलता है कि 'मैं कुछ हूँ।' उसे पूछे कि, 'तू क्या है?' तो वह कहता है, 'वह तो पता नहीं, लेकिन मैं कुछ
किसी के यहाँ पर भाव से चिवड़ा परोसा हो तो वह कहेगा, 'मुझे यह अच्छा नहीं लगता, मुझे नहीं चाहिए।' ऐसे चिढ़कर बोलता है। यही कुरूप अहंकार है। दिवाली के शुभ दिन पर उस चिवड़े के दो दाने मुँह में रख ले तो सामनेवाले की भावना को ठेस नहीं लगेगी, तब वह अहंकार सुंदर दिखेगा। हमें तो पोइज़न दें तो भी सामनेवाले की भावना हो, सामनेवाला भाव से दे रहा हो, तो वह पोइजन भी पी लेंगे! लेकिन हमारे पास उसका मारण (काट) होता है!?