________________
चित्त
अनंत में से एक चित्त
ये यहाँ सत्संग में कवि के पद गवाते हैं, वह किसलिए? कि उससे उतना समय चित्त ‘एकचित्त' हो जाता है। पूरा जगत् अनंत चित्त में पड़ा हुआ है और साधु-सन्यासी अनेक चित्त में है । और आपको हमारी उपस्थिति में या फिर अपने ये भजन गा रहे हों, तब एकचित्त रहता है। एकचित्त तो किसी का हो ही नहीं पाता न ! पूरी दुनिया चित्त को एकाग्र करने के लिए उठा-पटक कर रही है, लेकिन वह चित्त तो जब शुद्ध हो जाए, तभी एकाग्र हो पाएगा। 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तभी चित्त शुद्ध होता है।
३३१
व्यवहारिक चित्त तीन प्रकार के हैं
:
दे।
(१) 'अनंत चित्त' - इसमें स्थिरता ही नहीं होती ।
(२) ' अनेक चित्त' – इसमें स्थिरता होती है, इसलिए वह जिनालय या मंदिर में जाता है।
(३) 'एक चित्त' - ऐसा यदि हो जाए तब तो काम ही निकाल
प्रश्नकर्ता : दादा, क्या आत्मा ही परमात्मा है ?
दादाश्री : जब ‘आत्मा ही परमात्मा है' इस तरह का परमात्मा का अनुभव हो जाएगा तब वह परमात्मा है और शुद्धात्मा का अनुभव होगा, तो वह शुद्धात्मा है, और दुनिया के लोगों को मूढात्मा का अनुभव तो है ही न! ये मेरे चाचा, ये मेरी मौसी, ये मेरी सास की चाची के बेटे, उससे 'अनंत चित्त' हो गया, यह तो 'अनंत चित्त' हो चुका है, इसीलिए तो यह सब याद भी रहता है । इन रिश्तेदारों की पहचान में सतर्क रहते हैं और खुद कौन है उसकी पहचान ही नहीं रखता ! यदि खुद की पहचान हो जाए तो काम ही हो गया !
'दादा' के स्वप्न आते हैं, वे तो तभी आते हैं जब 'एक चित्त' हो जाता है। संसार के लोग चित्त की तरफ नज़र तक नहीं करते। सिर्फ मन