________________
आप्तवाणी-२
प्रश्नकर्ता : वह एकाग्रता करता है, इसलिए लाइट जैसा दिखता है और उससे आनंद आता है !
२९०
दादाश्री : लेकिन वह सारा आनंद रिलेटिव आनंद है, वह किसके जैसा है ? बर्फी खाने पर जो आनंद आता है, वैसा । फिर भी, यह अच्छा है। इस संसार के अनेक दुःखों में ठंडक के लिए कोई साधन तो चाहिए न? और जब तक सही मार्ग नहीं मिल जाता, तब तक वह ठीक है ।
अनाहत नाद
प्रश्नकर्ता : अनाहत नाद अर्थात् क्या?
दादाश्री : शरीर के किसी भी भाग का नाद पकड़ लेते हैं, वह हार्ट के पास, कोहनी के पास, कलाई के पास नाद आता है, उस नाद के आधार पर एकाग्रता हो जाती है और उसमें से आगे बढ़ते हैं। वह किस प्रकार का स्टेशन है वह भी समझ में नहीं आता । बहुत प्रकार के स्टेशन हैं, लेकिन उनसे आत्मा नहीं मिलता। वह मार्ग आत्मप्राप्तिवाला मोक्षमार्ग नहीं है । वह ध्येय नहीं है, लेकिन रास्ते में आनेवाले स्टेशन हैं, केन्टीनें हैं। यदि आत्मा बन गया है, ब्रह्म बन गया है, तो फिर ब्रह्मनिष्ठ बनना है और तभी काम पूरा होगा, वर्ना यदि महाराज खुद ही ब्रह्मनिष्ठ नहीं बने होंगे, वे ही जगत्निष्ठा में होंगे, तो अपना क्या भला होगा?
ब्रह्म तो है ही सभी में लेकिन उन्हें जगत्निष्ठा है। अभ जगत् के लोगों की निष्ठा जगत् में है । जगत् के सभी सुखों को भोगने की निष्ठा है। लेकिन 'ज्ञानीपुरुष' उस पूरी निष्ठा को उठाकर ब्रह्म में बैठा देते हैं इसलिए जगत् निष्ठा फ्रेक्चर हो जाती है और तभी अंतिम स्टेशन आता है और फिर सभी जगह आराम से घूमता है । इन बीच के स्टेशनों पर बैठने से कुछ नहीं होगा, उससे तो एक भी अवगुण नहीं जाएगा। अवगुण किस तरह जाएगा? उनमें मैं ही हूँ, ऐसा रहता है न! वेदांत ने भी कहा है कि, 'आत्मज्ञान के बिना कुछ भी नहीं हो सकता ।'
यह अनाहत नाद क्या सूचित करता है? वह तो पौद्गलिक है। उसमें