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आप्तवाणी-२
से कर्म चिपके हुए हैं, इसलिए प्रकाश नहीं दिखता। पाँच छिद्र हैं उनमें से भी सच्चा नहीं दिखता है। इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान सच्चा नहीं होता है। ज्ञानी अतीन्द्रिय सुख, शाश्वत सुख में होते हैं। आत्मा को जगाने के लिए तो 'ज्ञानीपुरुष' की ही आवश्यक्ता है, इसमें औरों का काम नहीं है।
हेन्डल समाधि प्रश्नकर्ता : दादा, मुझे चार-चार घंटों तक समाधि रहती है।
दादाश्री : जब समाधि रहती है तब तो रहती है, वह ठीक है, लेकिन फिर क्या वह थोड़ी-बहुत चली जाती है?
प्रश्नकर्ता : वह तो चली ही जाती है न! दादाश्री : तो वह टेम्परेरी समाधि कहलाएगी या परमानेन्ट? प्रश्नकर्ता : वह तो टेम्परेरी ही कहलाएगी न!
दादाश्री : इस जगत् में जो चल रही है वह सब टेम्परेरी समाधि है, जड़ समाधि है। समाधि तो निष्क्लेश और हमेशा के लिए रहनी चाहिए। ये सभी तो टेम्परेरी समाधि करते हैं। आप समाधि का मतलब क्या समझे हो?
प्रश्नकर्ता : उसमें मन एक जगह कुछ समय तक टिकाकर रखना हो तो रखा जा सकता है।
दादाश्री : लेकिन उससे लाभ क्या है? प्राणों को कंट्रोल किया हो तो लाभ होता है, लेकिन स्थायी ठंडक हो जाती है? यह तो अँगीठी के पास बैठे उतने समय तक ठंड उड़ती है, फिर वही की वही ठंड! सिगड़ी तो स्थायी चाहिए, ऐसी कि जिससे कभी भी ठंड नहीं लगे। समाधि तो अलग ही चीज़ है। हाथ से यदि पंखा करना हो तो उससे ठंडक लगती है लेकिन हाथ दुखते हैं, ऐसी हेन्डल समाधि किस काम की? यदि नाक दबाने से समाधि हो जाती तो बच्चे को भी नाक दबाने से समाधि हो जाएगी। तो ज़रा छोटे बच्चे का नाक दबाकर देखना, वह क्या करेगा? तुरंत