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आप्तवाणी-२
बुद्धि के उपयोग की लिमिट हम सुबह सात बजे दादर स्टेशन पर बैठे हुए थे, तब लोगों ने एकसाथ लाइटें बंद कर दीं। तो ऐसे में बुद्धिवाला क्या पूछेगा कि, 'ऐसा क्यों किया?' ये सूर्यनारायण उग रहे हैं उनका तेज आ रहा है, इसलिए अब इन लाइटों की क्या ज़रूरत? हम कहते हैं कि 'इस' फुल लाइट के आ जाने के बाद फिर बुद्धि की लाइटें बंद कर दो! जैसे कि ये लोग इसमें कितने जागृत हैं कि 'इसमें इलेक्ट्रिसिटी खर्च हो जाती है, उसी तरह अपनी लाइट में, मूल शक्ति में बुद्धि का उपयोग करने से पावर व्यर्थ हो जाती है और यदि लाइट का उपयोग नहीं करेगा तो मूल लाइट बढ़ेगी।
प्रश्नकर्ता : बुद्धि का प्रकाश तो रहेगा ही न?
दादाश्री : हाँ, ज़रूरत पड़ने पर बुद्धि काम कर जाती है लेकिन बटन चालू रखने की ज़रूरत नहीं है। वह तो ऑटोमेटिक चालू हो ही जाता है। लेकिन बटन चालू नहीं रह जाना चाहिए। बुद्धि यही दिखाती है कि सांसारिक हित किसमें है। किसी भी सांसारिक क्रिया में बुद्धि का ही उपयोग होता है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ,' वह ज्ञान का उपयोग है।
आत्मा सहजस्वरूप ही है, लेकिन प्रकृति सहज हो जाए, तभी वह सहज रह सकता है, उसका फल आता है। प्रकृति कब सहज होती है? बुद्धि बहन विश्रांति ले लें, तब प्रकृति सहज हो जाती है। कॉलेज में पढ़ते थे तब तक बुद्धि बहन आती थीं, लेकिन अब पढ़ चुके हैं, अब क्या ज़रूरत है? अब उसे कहना कि, 'आप घर पर रहो, हमें ज़रूरत नहीं है।' उसे पेन्शन दे दो। बुद्धि चंचल बनाती है, उससे आत्मा का जो सहज स्वभाव है उसका स्वाद चखने को नहीं मिलता। बाहर का भाग ही चंचल है, लेकिन यदि बुद्धि को एक तरफ बिठा देंगे तो सहज सुख बरतेगा! यदि कुत्ता देखा, तो बुद्धि कहेगी, 'कल उस आदमी को काटा था, यह कुत्ता भी वैसा ही दिखता है, मुझे भी काट जाएगा तो?' अरे, उसके हाथ में क्या सत्ता है? 'व्यवस्थित' में होगा तो काटेगा। बुद्धि, तू एक तरफ बैठ। सत्ता यदि खुद की होती तो लोग खुद का ही नहीं सुधार लेते? लेकिन सुधार हुआ नहीं!