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बुद्धि और ज्ञान
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भी नहीं होता और उन लोगों को अकाल जैसा भी कुछ नहीं है। हाँ, जो इन मनुष्यों के संग में आ गए हैं, वे जानवर- गाय, बैल, घोड़े वगैरह दुःखी हुए हैं। ___जैसे-जैसे आहार घटे, वैसे-वैसे प्रमाद घटता है और बुद्धि का डेवेलपमेन्ट होता है। चाय से शरीर का गठन बिगड़ गया, आहार कम हो गया उससे। पहले के ज़माने में चाय नहीं थी, तो खुराक इतनी अधिक थी, वे फिर बैल जैसे हो जाते थे, बुद्धि भैंस जैसी हो जाती थी। फिर भी, वे लोग मेहनत अच्छी कर सकते थे, हाथ में लिया हुआ काम कड़ी मेहनत से पूरा करते थे। बहुत खुराक से बुद्धि मोटी हो जाती है, सूक्ष्मता खत्म हो जाती है।
बुद्धि संसार का काम कर देती है, मोक्ष का नहीं। एक व्यू पोइन्ट, वह बुद्धि है और जब दोनों व्यू पोइन्ट उत्पन्न होते हैं, रियल और रिलेटिव दोनों व्यू पोइन्ट उत्पन्न होते हैं, तभी प्रज्ञा उत्पन्न होती है और प्रज्ञा उत्पन्न होती है तब दोनों व्यू पोइन्ट से, रियल और रिलेटिव दोनों को अलगअलग देखती है और उससे मोक्ष होता है। जहाँ प्रज्ञा उत्पन्न होती है, वहाँ पर सनातन सुख है। बुद्धि से तो कल्पित दु:ख और वह भी निरंतर का! सुख के पीछे दुःख भरा हुआ होता है, और फिर दुषमकाल! तो अपार दुःख और संपूर्ण मोहनीय व्याप्त है, निरंतर मूर्छा में भटक रहे हैं!