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बुद्धि और ज्ञान
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बुद्धि तो शंका करवाती है। शंका होने से गड़बड़ होती है। हमें तो अपने नि:शंक पद में ही रहना है। जगत् तो शंका, शंका और शंका में ही रहेगा।
बुद्धि की नॉर्मेलिटी प्रश्नकर्ता : दादा, बुद्धि को डिम कैसे कर सकते हैं?
दादाश्री : बुद्धि को डिम करने के लिए तो सम्यक् बुद्धि का ज़ोर चाहिए।
जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती है वैसे-वैसे स्मृति बढ़ती है, और वैसे-वैसे दुःख बढ़ता है! बुद्धि एक तरफ ही रख देनी है, उसकी बात ही नहीं माननी चाहिए। यदि चाली में एक व्यक्ति ऐसा हो कि जिसकी बात मानने पर अपना फज़ीता होता हो, तो उसकी बात हम कितनी बार एक्सेप्ट करेंगे? एक-दो बार, लेकिन फिर तो उसकी बात एक्सेप्ट ही नहीं करनी चाहिए। बुद्धि तो सेन्सिटिव बना देती है, इमोशनल बना देती है, तो उसकी बात अपने से किस तरह एक्सेप्ट की जाए?
व्यवहार में वाइज़ (समझदार) रहने की ज़रूरत है ताकि किसी को ज़रा सा भी नुकसान नहीं हो। अक़्ल की ज़रूरत नहीं है। अगर अक़्ल बहुत बढ़ जाए तो दिमाग़ ठिकाने नहीं रहता, बुद्धू बन जाता है, इसलिए बुद्धि को थोड़ा काट देना चाहिए। वाइज़ होने की ज़रूरत है, ओवरवाइज़ (ज़रूरत से ज़्यादा अक्लमंद) होने की ज़रूरत नहीं है। ओवरवाइज़ बन जाए तो फिर ट्रिक करना सीख जाता है। ट्रिक मतलब खुद की अधिक बुद्धि से सामनेवाले की कम बुद्धि का फायदा उठाना वह। ट्रिक करे तब तो चोर में और तुझमें फर्क क्या? यह तो चोर से भी अधिक जोखिमदारी कहलाती है। ट्रिक, वह तो बुद्धि से सामनेवाले को मारती है। भगवान ने कहा है कि, 'बुद्धि से मारते-मारते तू निर्दय बन जाएगा। इसके बजाय तो हाथ से मारना अच्छा कि जिससे कभी तो दया आएगी।' पूरा जगत् बुद्धि से मार रहा है, वह तो सबसे ऊँचा रौद्रध्यान कहलाता है। उसका फल सीधा नर्कगति आता है। रौद्रध्यान अर्थात् किसी के सुख को किसी भी प्रकार से छीन लेने की इच्छा। किसी को किसी भी प्रकार से दुःख देना,