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आप्तवाणी-२
जाए, उसे ज्ञान कहते हैं। गाड़ी में चारों तरफ से भीड़ में दब रहा हो, तब मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार चुप रहेंगे, तब जितना चाहिए उतना एकांत लो। यथार्थ एकांत तो सचमुच की भीड़ में ही मिले, वैसा है! भीड़ में एकांत, वही यथार्थ एकांत है!
साधु समाधि लगाते हैं, हिमालय में जाकर पूर्वाश्रम छोड़कर कहेंगे कि, 'मैं फलाना नहीं, मैं साधु नहीं, मैं यह नहीं,' उससे थोड़ा सुख बरतता है, लेकिन वह निर्विकल्प समाधि नहीं कहलाती। क्योंकि वह समझदारीपूर्वक भीतर नहीं उतरा।
प्रश्नकर्ता : एक व्यक्ति को खड़े-खड़े समाधि लग जाती है वह मैंने देखा है, हम आवाज़ लगाएँ तो भी वह नहीं सुन पाता।
दादाश्री : उसे समाधि नहीं कहते, वह तो अभानावस्था कहलाती है। समाधि किसे कहते हैं? सहज समाधि को, उसमें पाँचों इन्द्रियाँ जागृत रहती हैं। देह को स्पर्श हो तो भी पता चलता है। इस देह का भान नहीं रहता वह समाधि नहीं कहलाती, वह तो कष्ट कहलाता है। कष्ट उठाकर समाधि लगाए उसे समाधि नहीं कहते। समाधिवाला तो संपूर्ण जागृत होता है!
निर्विकल्प समाधि दुनिया के महात्माओं ने निर्विकल्प समाधि किसे माना है? चित्त के चमत्कार को। देह बेसुध हो जाती है और मानते हैं कि मेरा इन्द्रियज्ञान खत्म हो गया, लेकिन अतीन्द्रिय ज्ञान उत्पन्न नहीं हुआ इसलिए बीच में निरीन्द्रिय चमत्कार में भटकता है! किसी को चित्त चमत्कार दिखता है, किसी को उजाला दिखता है, लेकिन वह सच्ची समाधि नहीं है, वह तो निरीन्द्रिय समाधि है। देह का भान चला जाए, तो वह समाधि नहीं है। निर्विकल्प समाधि में तो देह का और अधिक सतर्क भान होता है। देह का ही भान चला जाए तो उसे निर्विकल्प समाधि कैसे कहेंगे?
प्रश्नकर्ता : निर्विकल्प समाधि यानी क्या? दादाश्री : 'मैं चंदूलाल' वह विकल्प समाधि। यह सब देखता है