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मन
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हैं। ये गाँठे लोभ की भी होती हैं और विषयों की भी होती हैं। ये गाँठें आकार में छोटी-बड़ी, तरह-तरह की होती हैं। जिसमें बहुत ही इन्टरेस्ट होता है, वे गाँठे बड़ी होती हैं, उनके बहुत विचार आते हैं। उन विचारों का छेदन करने के लिए उन्हें देखते रहना पड़ता है। ये विचार पढ़े जा सकते हैं, ऐसे हैं। पसंदीदा विचार आएँ तो, उनमें तन्मयाकार रहता है और नापसंद विचार आएँ, तब तुरंत ही ऐसा लगता है कि खुद से वे अलग
हैं।
नापसंद में चोखा मन नापसंद चोखे मन से सहन कर पाएँगे, तब वीतराग हुआ जाएगा। प्रश्नकर्ता : चोखा (अच्छा, निर्मल) मन का मतलब क्या?
दादाश्री : चोखा मन यानी सामनेवाले के लिए खराब विचार नहीं आएँ, वह। यानी क्या? कि निमित्त को काटे नहीं। कदाचित सामनेवाले के लिए खराब विचार आ जाएँ तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लें और उसे धो दे।
प्रश्नकर्ता : मन चोखा हो जाए, वह तो अंतिम स्टेज की बात है न? और जब तक संपूर्ण चोखा नहीं हो जाता, तब तक प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं न?
दादाश्री : हाँ, वह सही है, लेकिन कुछ बातों में चोखा हो चुका होता है, और कुछ बातों में नहीं हुआ होता। वे सब स्टेपिंग हैं। जहाँ चोखा नहीं हुआ है वहाँ प्रतिक्रमण करना पड़ेगा।
हमें तो शुरू से ही दुनिया के एक-एक शब्द का विचार आता था। पहले भले ही ज्ञान नहीं था लेकिन 'विपुलमति' थी, इसलिए बोलते ही स्पष्ट समझ में आ जाता था। चारों ओर का तौल निकल जाता था। बात निकले तो तुरंत ही सार निकल जाए, उसे 'विपुलमति' कहते हैं। विपुलमति होती ही नहीं है न किसी में। यह तो एक्सेप्शनल केस हो गया है! जगत् में विपुलमति कब कहलाती है? ऐसी मति हो जो एवरीव्हेर एडजस्ट कर