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मन
प्रश्नकर्ता : एकेन्द्रिय जीवों में मन होता है ?
दादाश्री : एकेन्द्रिय में मन-बुद्धि- चित्त और अहंकार कुछ भी नहीं होता है। जिनकी पाँच इन्द्रियाँ होती हैं, पाँच इन्द्रियों का पुण्य जमा हो जाता है, उनमें मन उत्पन्न होता है । इन पाँच इन्द्रियों में वापस ये जो गाय, भैंस, आकाश में उड़नेवाले जीव हैं, उनका मन सीमित होता है, लिमिट में होता है, अगर लिमिट से बाहर जाता न तो ये बंदर घर में रह रहे होते और पुलिस - वुलिस सभी को काट खाते, लेकिन उनमें मन लिमिट में होता है
प्रश्नकर्ता : एकेन्द्रिय से पँचेन्द्रिय तक में मन का किस तरह से डेवेलपमेन्ट होता है ?
दादाश्री : जैसे-जैसे डेवेलपमेन्ट में आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे आवरण घटते हैं और प्रकाश बढ़ता जाता है और वैसे-वैसे अधिक देखता जाता है।
जिसे नाक की तीव्रता होती है वे तीन इन्द्रियों में है, आँख का चस्का लगा हो वह चार इन्द्रियों में और कान का चस्का लगा हो वह पाँच इन्द्रियों में है। यह जो चींटी है उसे, छत पर घी लटकाया हो तो भी वह कहाँ है, कितनी दूरी पर घी है, वह समझ में आ जाता है, और ऐसी समझ होती है कि उसे किस मार्ग से और वह भी छोटे मार्ग से जाकर ले आए।
मन का स्वरूप
प्रश्नकर्ता : मन क्या होता होगा ?
दादाश्री : यह 'चंदूलाल' है, वह आरोपित भान है, लेकिन रियली