________________
३०१
जाएगा, शास्त्र ऐसा कहते हैं । लेकिन यह निर्विकल्पी नहीं होने देता और कहेगा, ‘मुझे यह करना है और वह करना है।' ज़रा नींद आ जाए तो 'भोजन कम करना है, ' भोजन त्याग करना बाकी रहा! वे विकल्प के खड्डे में से निकलने के लिए निर्विकल्पी का ध्यान करते हैं !
ध्यान
हमने आपको यहाँ सिर्फ निर्लेप आत्मा ही नहीं दिया, निर्विकल्प समाधि भी दी है। क्रमिक मार्ग में ठेठ सर्वांग शुद्ध आत्मा बन जाए, तब जाकर निर्विकल्प समाधि होती है । जहाँ पर कुछ भी त्याग - ग्रहण करने का है, वहाँ पर विकल्प है। बड़ी चीज़ ग्रहण करता है और छोटी चीज़ का त्याग करता है, इसलिए विकल्प हुए बगैर रह नहीं पाता। विकल्प एक नहीं होता लेकिन अनेकों होते हैं। शिष्यों के प्रति कठोर हो जाए वह भी विकल्प।
जिसे देखते ही समाधि हो जाए, उस दर्शन को 'दर्शन' कहा जाता है, देखते ही समाधि हो जाए, वे दर्शन सच्चे हैं। कुछ को तो देखते ही उल्टी हो जाती है, माल ही ऐसा! लेकिन देखते ही समाधि हो जाए, वे दर्शन सच्चे दर्शन कहलाते हैं । ये सब हमारे दर्शन किसलिए करते रहते हैं? ये दिखते हैं, वे ही सब को समाधि करवाते हैं । वह समाधि तो कैसी है? उसे आप निकालो, तब भी जाए नहीं ! उस समाधि से कहें कि, 'हे समाधि, थोड़े दिन पीहर तो जाकर आ ।' तो वह कहेगी, 'ना, इस ससुराल के बिना मुझे अच्छा नहीं लगेगा ।' समाधि से कहें कि 'इस देह से ज़रा गड़बड़ करवानी है, इसलिए तू जा न !' तो वह कहेगी कि, 'पहले कहना था न! अब वह नहीं हो सकेगा।' अब तो इस सहज समाधि को निकालें तो भी जाएगी नहीं, अब तो 'खाते हैं- पीते हैं, उठते हैं - बैठते हैं, उसे देखता है ज्ञानाकार । '
भगवान ने कहा है, ‘यदि तू कल्पना में है तब यदि विचार नहीं करेगा तो गुनहगार है, और यदि तू निर्विकल्प है और विचार करेगा तो गुनहगार है।'
आठ मिनट के लिए मन-वचन-काया जिसके बंद हो जाएँ, उसे