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आप्तवाणी-२
तो ठेठ गायों को, हाथी आदि को बचाने के लिए निकल पड़े हैं! हाथी को बचानेवाला तू कौन पैदा हुआ है? तब फिर इनका जन्मदाता कौन होगा? बड़ा बचानेवाला आया है! किसी को मुँह से ऐसा नहीं कहना चाहिए कि, 'मैं इन खटमलों को मारनेवाला हूँ।' 'खटमलों को मैं मारूंगा' ऐसा भाव निकाल देना, नहीं तो तेरे ही आत्मा की तू हिंसा कर रहा है। खटमल तो जब मरनेवाला होगा तब मरेगा, और मारने का अधिकार किसे है? कि जो एक खटमल बना सके उसे। भगवान ने क्या कहा है, 'जितना तू कन्स्ट्रक्ट(निर्माण) करता है, उतना ही तू डिस्ट्रक्ट(ध्वस्त) कर सकता है। तेरा जितना कन्स्ट्रक्शन होगा, उतने के डिस्ट्रक्शन में हम हाथ नहीं डालते, इसलिए तू खटमल को डिस्ट्रक्ट मत करना।' ऐसी सादी भाषा तो समझ में आ सकती है न? एक खटमल बनाना हो तो वह बनाया जा सके, ऐसी चीज़ नहीं है। उसमें ये मूर्ख चाहें जो करते हैं, कितने ही जीवजंतु मार डालते हैं! निरे जीवजंतु मार डालते हैं।
जैसे भाव - हम वैसे ही निमित्त बनते हैं इस जन्म में तो भाव करने के अलावा अन्य कुछ नया नहीं होता है लेकिन जन्मोजन्म तक भाव करने के कारण, अब जो जीवजंतु मरनेवाले हैं न, वे इसके हिस्से में आते हैं, और कुछ भी नहीं होता। जीवजंतुओं के मरने का टाइमिंग होता है, तब वह किसके हिस्से में आता है? जिसने मारने का भाव किया होगा, उसके हिस्से में आता है। किसी को मारने की सत्ता है ही नहीं, लेकिन हर एक जीव का मरने का टाइम तो होता ही है न? कुछ खटमल सत्रह दिन जीते हैं, कुछ तीन महीने जीते हैं और कुछ पाँच साल तक भी जीते हैं। उन सबके मरने का टाइमिंग है न? यानी जब उसके मरने का समय होता है, तब वह चंदूलाल के हिस्से में आकर खड़ा हो जाता है, क्योंकि चंदूलाल ने निश्चित किया था, दुकान शुरू थी कि, 'हम मारने के लिए ही हैं।' और जैनों ने 'नहीं मारने हैं' ऐसा निश्चित किया था, इसलिए उनके हिस्से में नहीं आता, इतना ही है। इस बात का अहंकार करने जैसा नहीं है। वह तो सिर्फ भाव ही किया था कि 'नहीं मारना है', वही अभी काम कर रहा है।