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भावहिंसा
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जीवजंतुओं को कोई बचाता ही नहीं है, उसी तरह जीवजंतुओं को कोई मारता भी नहीं है। वह तो उसे जीवजंतुओं को मारने का भाव है, इसीलिए वह योग उसे आ मिलता है, क्योंकि टाइमिंग होता है। हर एक जीव मात्र का टाइमिंग आया होता है, उसके मरणकाल से पहले कोई जीव मर सके, ऐसा है ही नहीं। जीव के मरणकाल से पहले यदि कोई उसे मार सकता तो उसे 'मारता है' ऐसा कह सकते हैं। लेकिन नहीं, मरणकाल से पहले कोई मार ही नहीं सकता। वह तो जब उसका काल पकता है, तब चंदूलाल के हिस्से में आता है। हत्कर्मी के हिस्से में 'हत्कर्मी भाववाला' आता है और सत्कर्मी के हिस्से में 'सत्कर्मी भाववाला' आता
है
प्रश्नकर्ता : लेकिन चंदूलाल निमित्त तो बनते हैं न?
दादाश्री : हाँ, चंदूलाल निमित्त बनते हैं, सिर्फ निमित्त बनते हैं। मारने के भाव किए थे इसलिए वह निमित्त बनता है। बाकी, जीवजंतुओं के जन्म से पहले ही, मृत्यु कब होगी उसका हिसाब तय होता है - जीव मात्र का। यह तो गलत अहंकार करता है।
भगवान क्या कहते हैं कि, 'कोई मनुष्य किसी जीव को मार ही नहीं सकता, भाव-मरण करता है, बस उतना ही है।' जितने जीवजंतु हों उतने मारने हैं ऐसा निश्चित करता है, वह भाव-मरण है। खेत में चार साँप हैं उन्हें मारने हैं, मारे जा सकें या नहीं भी मारे जा सकें, उसका कोई ठिकाना नहीं। वे पकड़ में आएँ या नहीं भी आएँ, लेकिन जब से उसने खुद ने भाव किए तब से खुद उसके ही आत्मा का मरण हो रहा है। फिर साँपों को तो मरना होगा तब मरेंगे, उनका टाइमिंग होगा तब मर जाएँगे। यानी हम एक ही वाक्य कहते हैं कि सभी जीवों के जन्म से पहले ही यह निश्चित है कि वे कब मरनेवाले हैं। अब इतनी ही बात यदि समझ जाए तब तो काम ही निकल जाए न! जन्म से पहले ही जिनका मरण निश्चित हो चुका है, उसे मारनेवाले हम कौन होते हैं? वह तो जिस-जिसने मारने के भाव किए होते हैं, 'साँप मारने ही चाहिए' ऐसे भाव निश्चित किए हों, उस गाँव में जब साँप निकलते हैं, तब ऐसे दो-तीन साँप मारनेवाले लोग