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भावहिंसा
जगत् गप्प नहीं है, लेकिन लोग उल्टा मान बैठे हैं। काफ़ी कुछ लोग कहते हैं कि भगवान ऊपर हैं, लेकिन वह सच नहीं है, लोगों की समझ उल्टी है। इसीलिए हमें स्पष्ट कहना पड़ता है कि इस वर्ल्ड में कोई ऐसा परमाणु बाकी नहीं बचा कि जहाँ मैं घूमा नहीं होऊँगा। ब्रह्मांड के अंदर रहकर और ब्रह्मांड से बाहर रहकर, 'जैसा है वैसा' मैं देखकर बता रहा हूँ और गारन्टी देता हूँ कि ऊपर कोई बाप भी नहीं है। यह तो ऊपरवाला, ऊपरवाला करके बिना बात की दखलंदाज़ी की, इसलिए आपकी चिट्ठी भगवान को नहीं पहुँचेगी और कागज़ के पैसे बेकार जाएँगे और भावना भी बेकार जाएगी। जहाँ है वहाँ पर बात करो न, भीतर जहाँ बाप बैठा है, तो कभी न कभी तेरी अर्जी पहुँचेगी। या फिर मूर्ति की पूजा कर क्योंकि वह प्रत्यक्ष आँखों से दिखती है, फिर भले ही वह पत्थर की है, लेकिन लोगों ने मान्य की है। भले ही तुझे मान्य नहीं हो, लेकिन लोगों को मान्य है, लोगों के आरोपित भाव हैं, वहाँ पर चैतन्यवाले का आरोपित भाव है। वह मान्यता भी रोंग मान्यता है कि ऊपर भगवान है, वह रोंग एड्रेस है। बिना एड्रेस की चिट्ठी डालेंगे तो किसे पहुँचेगी? भीतरवाले को देख न! भगवान भीतर ही बैठे हैं, अन्य कहीं भी नहीं हैं। उन भगवान का सच्चा एड्रेस तुझे बताता हूँ - गॉड इज़ इन एवरी क्रीचर व्हेदर विज़िबल
ओर इनविजिबल (भगवान प्रत्येक जीव में विद्यमान है, भले ही वे जीव दृष्टिगोचर हैं या नहीं)।
एवरी क्रीचर (प्रत्येक जीव) में भगवान देख न, तो तुझे क्रीचर मारने का भाव ही उत्पन्न नहीं होगा और तब तू भावहिंसा से बच जाएगा। निरंतर भावहिंसा ही कर रहा है। क्रोध-मान-माया-लोभ का मतलब क्या? कि भावहिंसा; भगवान ने इसी में अहिंसक बनने को कहा है। जबकि ये लोग