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भावहिंसा
सौ-डेढ़ सौ का कर्ज़ हो गया है ।' तब वह कसाई कहेगा, 'पचास देता हूँ।' तब ब्राह्मण कहता है, 'डेढ़ सौ दे तो गाय दे दूँ तुझे।' डेढ़ सौ रुपये देकर वह कसाई गाय वापस ले आता है। इसने चार सौ में दी और डेढ़ सौ में छुड़वा लाता है वापस । इन लोगों को मूर्ख बना देता है। ये कीर्ति में पड़े हैं, ओवरवाइज़ हो गए हैं !
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अरे, किस तरह जन्म लेता है और किस तरह मरता है उसमें तू मत पड़। तू तेरा भावमरण बचा । सब सबकी सँभालो । तेरा भावमरण उत्पन्न नहीं हो, भावहिंसा नहीं हो, तू उसका ध्यान रख। आप किसी पर क्रोध करते हो तो उसे तो शायद दुःख होता होगा, लेकिन आपसे तो एक बार हिंसा हो गई, भावहिंसा ! इसलिए भावहिंसा होने से बचाओ, ऐसा भगवान ने कहा है। इतने तक ही कहा है, इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं कहा है। मैं क्या कह रहा हूँ, वह व्यू पोइन्ट समझ में आ रहा है आपको ? बाहर यह केस कितना अधिक उलझ चुका है? अब यह कैसे सुलझ पाएगा? इन्हें कैसे चमकाना? काले पड़ चुके बर्तनों के लिए किस तरह का एसिड इस्तेमाल किया जाए, वही मुझे समझ में नहीं आता । बहुत साल नहीं हुए हैं, २५०० साल ही हुए हैं भगवान महावीर को गए हुए। उनमें से ५०० सालों तक तो अच्छा रहा और २००० साल में इतना अधिक ज़ंग लग गया? कृष्ण भगवान को गए हुए ५१०० साल हुए हैं । इतने में कितना अधिक ज़ंग चढ़ गया है। हमें इतना कठोर किसलिए बोलना पड़ता है? हमारी 'ज्ञानीपुरुष' की ऐसी कठोर वाणी नहीं होती । लेकिन अत्यंत करुणा होने के कारण सामनेवाले के रोग निकालने के लिए ऐसी करुणाभरी वाणी निकल रही है।
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मरणकाल ही मारे
आपकी समझ में आया कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? यह गहन बात है, यह कोई बाज़ारू बात नहीं है । इसमें ऐसी बातें हैं कि सभी शास्त्रों का तोल करके एक ओर रख दें क्योंकि टाइमिंग के बिना कोई मार सके, ऐसा है नहीं, इसलिए भगवान क्या कहना चाहते हैं कि, 'आप यह भावबीज मत पड़ने देना।' यदि बीज नहीं पड़ने दिया तो फिर आप बंद आँखों से