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तप
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तुरंत ही समझ जाते हैं कि इसने तो पटाखा फोड़ा । वह तो अकुलाती है, इसलिए फोड़ा और मेरे पैर पर डाला, लेकिन अब मैं वापस उसके पैर पर डालूँगा तो वह मेरे सिर पर डालेगी! अब रखो न एक तरफ! अपने इस केस को एक तरफ रख दो न!
तप करे और उसका किसी को भी पता नहीं चलने दे, वह खरा तप! तप में यदि किसीसे कहें, तो वह सुनता है और फिर वह हमें आश्वासन दे जाता है, यानी कि वह अपने पास से दो आने जितना हिस्सा ले जाता है और ऊपर से उल्टे रास्ते चढ़ा देता है । तब फिर किए गए तप के बारे में किसी को क्यों बताएँ ? बिना वजह कमिशन कौन देगा? प्राप्त तप में जितना आश्वासन लेता है, उतना तप अधिक करना पड़ता है। हमने तो कभी भी किसीसे आश्वासन नहीं लिया है। आश्वासन लेने पर तप करना पड़ता है। नहीं तो भीतर तपता रहता है और तप को ही अंदर समाते रहना पड़ता है। उसका उफान आता है, फिर वह बैठ जाता है । उसका टाइम हो जाएगा, तब उफान आएगा ही। यह ज्ञान - दर्शन - चारित्र और तप कहा है, अर्थात् तप में हमें जो आ पड़े हैं, ऐसे तप का तप करना है। आलूबड़े खाने का भाव हो जाए और नहीं मिलें तो उस दिन तप करना है !
प्रश्नकर्ता : दादा, ये आपके पैरों में निशान कैसे पड़ गए ?
दादाश्री : वह तो हमने आत्मा प्राप्त करने के लिए तप किया था। वह कैसा तप कि बूट में कील ऊपर उठ गई हो तो उसे ठोकते नहीं थे, ऐसे ही चलाते रहते थे । उसके बाद हमें पता चला कि यह तो हम उल्टे रास्ते पर हैं। हमने जैनोंवाला तप किया है । 'बूट की कील बाहर निकले और चुभे उस समय यदि आत्मा हिल जाए, तब तो फिर आत्मा प्राप्त ही नहीं हुआ, ' मैं ऐसा मानता था। इसलिए वह तप होने देता था, लेकिन उस तप का दाग़ अभी तक भी नहीं गया है ! तप का दाग़ पूरी ज़िंदगी नहीं जाता। यह उल्टा मार्ग है ऐसा हमें समझ में आ गया था। अंदरुनी तप होना चाहिए ।
तप, क्रिया और मुक्ति
प्रश्नकर्ता : तप और क्रिया से मुक्ति मिलती है क्या ?