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तप
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हुआ होता है इसलिए मैल से मैल निकालना ही पड़ता है न! क्योंकि गुरु, वे भी मैले ही हैं न! जबकि 'ज्ञानीपुरुष' संपूर्ण शुद्ध होते हैं, इसलिए कोई मैल नहीं चढ़ता। क्रमिक मार्ग में गुरु शिष्य पर मैल चढ़ाते जाते हैं और यहाँ अक्रम मार्ग में सीधा शुद्ध ही प्राप्त हो जाता है । जिसका संग किया, वह उसका खुद का मैल तो चढ़ाएगा ही लेकिन सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही संपूर्ण शुद्ध होते हैं इसलिए कोई मैल नहीं चढ़ता।
सच्चा त्यागी!
संसारियों के दुःख मेरे हो जाएँ और मेरे सुख संसारियों के हो जाएँ, जिसे ऐसी भावना रहती है वह त्यागी कहलाता है । जो खुद ही अशाता में रहता हो, तो वह दूसरों को कैसे सुख दे पाएगा? ऐसा धर्ममार्ग रहे, तब भी शांति रहे।
जगत् भोगने के लिए है तो इसे भोगो, लेकिन किसी को दुःख मत देना और जिसे त्यागी बनना हो तो बनो लेकिन किसी को दुःखी मत करना। पत्नी से साइन करवा लेना कि, 'मेरी संपूर्ण राजीखुशी से पति जा रहे हैं,' लेकिन यह तो ज़बरदस्ती साइन करवा लेता है । सब को राज़ी करने के बाद ही त्याग ले सकते हैं।
भगवान ने क्या कहा है कि, 'खरा त्यागी पुरुष कैसा होता है? जिसका मुँह देखते ही हमें आनंद हो उठे, उनके पैर छूने का मन करता रहे, उन्हें देखते ही अगर इन्कम टैक्स की चिंता हो, फिर भी उसे भूलकर आनंद आ जाए, दिल को ठंडक हो जाए ।
आत्मा क्षणभर के लिए भी अनात्मा नहीं हुआ है । उसे एक क्षणभर के लिए भी अनात्मा की इच्छा नहीं हुई है। आत्मा को त्याग नहीं है, जप नहीं है, तप नहीं है। त्यागी को आत्मा के त्याग की भ्रांति है और संसारी को आत्मा के संसार की भ्रांति है ।
ज्ञानी की आज्ञा, वही धर्म और तप
मोक्ष के मार्ग में कुछ भी खर्च करने की ज़रूरत नहीं है, तप, त्याग,