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बैर
यह जगत् किससे खड़ा है ? बैर से । यदि बैरभाव गया तो सबकुछ गया। यह तो बैर से ही जगत् खड़ा है, इसलिए हम समभाव से फाइलों का निकाल करने को कहते हैं । ऐसे निकाल करने से पुराने बैर का निकाल हो जाता है, बाद में नया बैर मत बाँधना।
दो भाई हों, एक दिन दोनों के मन जुदा हो जाए, तो दूसरे दिन और अधिक जुदा हो जाएँगे । फिर तो धीरे-धीरे वह भाई नापसंद हो जाएगा और फिर तो बैर बंधेगा। फिर वे दोनों कितने दिन साथ में रहेंगे? देह को बहुत पटाना नहीं चाहिए। ये 'दो भाग' एक होते हैं, उसी से तो यह जगत् खड़ा है । लोग क्या कहते हैं कि, 'मैं नहीं करता, फिर भी क्यों हो जाता है?' यह एकाकार होने से दख़ल हो जाती है, उसमें फिर गड़बड़ हो जाती है। उससे होली तो सुलगी हुई ही रहती है। यह तो दो भाग अलग हो गए फिर भले ही होली जले, हम तो उसके ज्ञातादृष्टा
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यह ग्राहक और व्यापारी के बीच का संबंध तो होता है न? और व्यापारी दुकान बंद करे तो वह संबंध छूट जाता है ? नहीं छूटता । ग्राहक तो याद रखता है कि 'इस व्यापारी ने मुझे ऐसा किया, ऐसा खराब माल दिया था।' लोग तो बैर याद रखते हैं, उससे फिर इस जन्म में भले ही आपने दुकान बंद कर दी हो, लेकिन वह अगले जन्म में क्या आपको छोड़ देगा? नहीं छोड़ेगा, वह तो बैर का बदला लेकर ही रहेगा । इसीलिए भगवान ने कहा है कि, किसी भी तरह से बैर छोड़ो । हमारे एक पहचानवाले रुपये उधार लेकर गए, फिर वापस देने ही नहीं आए। तो हम समझ गए कि यह बैर से बाँधा हुआ होगा, वह भले ही ले गए और ऊपर से हमने उन्हें कहा कि, ‘तू अब हमें रुपये वापस मत देना, तुझे छूट है।' ये पैसे