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आप्तवाणी-२
आत्मा की अनंत शक्तियाँ हैं, वे इतनी सारी हैं कि एक घंटे में ही करोड़ संयोग कमा लेता है, उसी तरह एक ही घंटे में करोड़ों संयोग निकाल भी सकता है। लेकिन निकालने का अधिकार किसे हैं? 'ज्ञानीपुरुष' को!
संयोग और संयोगी, इस तरह दो ही हैं। जितनी हद तक संयोगी सीधा है, उतनी हद तक संयोग सीधे और यदि टेढ़ा संयोग आए तो तुरंत ही समझ लेना है कि 'हम टेढ़े हैं इसलिए वह टेढ़ा आया।' संयोगों को सीधे करने की ज़रूरत नहीं है लेकिन हमें सीधा होने की ज़रूरत है। संयोग तो अनंत हैं, वे कब सीधे होंगे? जगत् के लोग संयोगों को सीधा करने जाते हैं, लेकिन खुद सीधा हो जाए तो संयोग अपने आप सीधे हो ही जाएँगे, खुद के सीधा होने के बावजूद भी थोड़े समय तक संयोग टेढ़े दिखते हैं, लेकिन बाद में वे सीधे ही आएँगे। कोई ऊपरी है नहीं, वहाँ टेढ़ा संयोग क्यों आएगा? यह तो खुद टेढ़ा हो गया है इसलिए टेढ़े संयोग आते हैं। पेचिश होती है तब क्या उसके तुरंत के ही बोये हुए बीज होते हैं? ना, वह तो बारह साल पहले बीज पड़ चुके होते हैं उनके कारण अभी पेचिश होती है और पेचिश हुई यानी बारह साल की भूल तो मिटेगी न? वापस फिर से भूल नहीं की तो फिर से पेचिश नहीं होगी। गाड़ी में चढ़ने के बाद भीड़वाली जगह मिलती है, क्योंकि खुद ही भीड़वाला है। खुद यदि भीड़ रहित हो चुका हो, तो जगह भी बिना भीड़वाली मिलती है। खुद की भूलें ही ऊपरी हैं, वह अपने को समझ में आ गया फिर है कोई भय? यह हमें देखकर कोई भी खुश हो जाता है। हम भी खुश हो जाते हैं इसलिए अपने आप सामनेवाला भी खुश हो जाता है। यह तो सामनेवाला हमें देखकर खुश तो क्या लेकिन आफ़रीन हो जाता है। सामनेवाला हमारा ही फोटो है!
संयोगों में खुद कौन? खुद के पुण्य हों तो सभी संयोग, जो भी आते हैं वे सभी मदद करते जाते हैं और पाप का उदय हो, तब जो संयोग आते हैं वे टेढ़े आते हैं और साथ में जाते-जाते डंडे जड़ते हुए जाते हैं! ये कुछ लोग बोलते हैं न कि, 'मेरे संयोग अच्छे नहीं हैं।' वह तो ज्ञानी का वाक्य कहलाता