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आप्तवाणी-२
को भगवान ने बुलाकर लाने को नहीं कहा है, आ पड़े तप का हँसते मुख से स्वागत कर लेने को कहा है। तब ये लोग तो आ पड़े तप को इधरउधर धकेलते हैं, मुँह बिचकाते हैं, यानी जो वह तप देने आता है अनेक गुना करके उसी को वापस दे देते हैं, और नहीं आए हुए तप को बुलाने जाते हैं, नहीं हो वहाँ से। किसी का देखकर सीख आते हैं और तप करने बैठ जाते हैं ! अरे, तप भी किसी का सीखकर किया जाता होगा? तेरा तप अलग है, उसका तप अलग है, हर एक का तप अलग-अलग होता है। हर एक के कॉज़ेज़ अलग-अलग होते हैं। और आज के काल में तप तो सामने से ही आसानी से आ पड़ते हैं, ऐसा है।
भगवान महावीर ने कहा था कि, 'कलियुग में सावधानी से चलना, तुझे जो तप प्राप्त हो उसे भोगना और अप्राप्त तप खड़ा मत करना।' सामनेवाला व्यक्ति टकरा जाए और तुझे यहाँ पर लग जाए तो उस तप में शांति से तपना, जबकि वहाँ तो झगड़ा करता है और घर आकर कहेगा कि, 'कल तो मुझे उपवास करना है।' 'अरे, ऐसा किसलिए करता है? तुझे यदि शरीर की अनुकूलता नहीं हो तो एकाध जून या दो जून का उपवास कर डाल, उसमें हर्ज नहीं है, वह सहज स्वभाव है। ऐसा जानवरों में भी होता है। लेकिन ऐसा तूफ़ान करने की ज़रूरत ही नहीं है।' भगवान ने कहा है कि, 'तीनों काल में द्वापर, त्रेता और सत्युग में त्याग करना, तप करना, लेकिन चौथे काल में, कलियुग में तो तुझे तप-त्याग ढूँढने नहीं जाना पड़ेगा, मोल लेने नहीं जाना पड़ेगा।' वह तो जिस काल में मोल लेने जाना पड़ता था, उस काल में ये तप थे, क्योंकि पूरा दिन ढूँढे तो भी तप मिलता ही नहीं था न! वे काल चले गए सारे। अभी तो कितने तप मिलते
महावीर भगवान को तप खोजने जाना पड़ता था उस काल में भी! लोग तपवाले थे, लेकिन भगवान को तप नहीं आता था न? भगवान को तप नहीं आ रहे थे इसलिए उनके मन में विचार आया कि, 'ये सभी भिक्षा देते हैं तो ध्यान रखकर मेरे लिए खाना बनाते हैं और फिर देते हैं। कोई मुझे गालियाँ नहीं देता, कोई मुझे कुछ भी नहीं करता। अभी तो मेरे भीतर