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संग असर
जला देती है, वैसा ही इस कुसंग का है इसलिए कुसंग को प्रत्यक्ष अग्नि समझना। इनसे परहेज़ रखना है, परहेज़ रखें तो रोग फिर से उत्पन्न नहीं होता। होटल में खाना, वे खराब परमाणु हैं, वह कुसंग है । इस जगत् में कुछ भी जानबूझकर नहीं कटता है, अनजाने में कट जाता है । इसलिए सचेत
रहना।
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पूरा संसार कुसंग स्वरूप है और फिर कलियुग का प्रभाव ! सत्संग से कुसंग के परमाणु निकल जाते हैं और नये शुद्ध परमाणु प्रविष्ट होते हैं ।
सत्संग किया ऐसा कब कहलाता है कि जहाँ सभी दुःख जाएँ तब, यदि दुःख नहीं जाएँ तब तो कुसंग किया कहलाएगा। चाय में चीनी डालें तो मीठी ही लगेगी न? सत्संग से सर्वस्व दुःख जाते हैं ।
कुसंग के कारण दुःख मिलते हैं । कुसंग दुःख भेजता है और सत्संग सुख देता है और यहाँ का यह सत्संग तो मोक्ष देता है। 'ज्ञानीपुरुष' पूरे जगत् में से निष्ठा, जगत् में भटकती वृत्तियों को उठाकर ब्रह्म में बैठा देते हैं। और काम हो जाता है । यह तो मुक्ति का धर्म है। 'हम' 'स्वरूपज्ञान' दें तो निरंतर खुद का स्वरूप ही याद रहता है। नहीं तो किसी को खुद का स्वरूप याद ही नहीं रहे। लेकिन प्रकट 'ज्ञानीपुरुष, ' वे दीपक जला दें तो साक्षात्कार हो जाता I
कुसंग से पाप घुसता है और फिर वह पाप काटता है। यदि फुरसत में हो और कोई कुसंग मिल जाए तो फिर कुसंग से निंदा में पड़ता है और निंदा के दाग़ पड़ जाते हैं। ये सारे दुःख हैं, वे उसी के हैं। हमें किसी के बारे में बोलने का क्या अधिकार है ? हमें अपना देखना है । कोई दुःखी हो या सुखी, लेकिन हमें उसके साथ क्या लेना-देना? ये लोग तो यदि राजा हो, तो उसकी भी निंदा करते हैं। खुद को कुछ भी लेना-देना नहीं होता, ऐसी पराई बात ! ऊपर से द्वेष और ईर्ष्या, और उसी के दुःख हैं I भगवान क्या कहते हैं कि वीतराग बन जा । तू है ही वीतराग, ये राग- - द्वेष किसलिए? तू नाम में पड़ेगा, तभी राग- - द्वेष हैं न? और अनामी हो जाएगा तो वीतराग हो गया !