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आप्तवाणी-२
पति के आधार पर सुख था वह भी चला गया है, तो उसके ऊपर सभी को करुणा रखनी चाहिए। लेकिन इन लोगों ने उस पर भी भयंकर तिरस्कार बरसाया। अरे, जैसा वर्ल्ड में कहीं भी नहीं होगा, हरिजनों के प्रति वैसा तिरस्कार किया। दूसरी सभी जगहों पर भी तिरस्कार, सगा भाई हो तो उस पर भी तिरस्कार - भयंकर तिरस्कार किया। अब, उसे सुधरा हुआ देश कहा ही कैसे जाए?
___ हम जब छोटे थे, तब सभी ओल्ड लोग क्या कहते थे, 'अरे बिगड़ गए हैं, बिगड़ गए हैं।' फिर मैंने उनसे पूछा कि, 'आपको आपके दादा क्या कहते थे?' उनका ऐसा कहना है कि 'जैसा हमने किया, वैसा करो।' ऐसा अनादि काल से चला आ रहा है। कहते हैं कि, 'हमने किया, वैसा करो।' अरे, आपके चेहरे पर नूर नहीं दिखता। पूरे दिन कषाय, कषाय और कषाय ही करते रहते हैं। और खाना खाने जाएँ न, तो ऐसा ही समझते हैं कि आज किसी के यहाँ हमने मुफ्त में खाया है। आज मुफ्त का मिला है। भारत के डेवेलप्ड लोग जब किसी के यहाँ खाना खाने जाएँ तो उन्हें ज्ञान हाज़िर हो जाता है कि 'आज फ्री भोजन करना है! तो डटकर अच्छी तरह खाना।' ऐसे हैं अपने सब डेवेलप्ड बूढ़े ! ये सभी लोग डेवेलप्ड थे। उनमें से कोई-कोई तो, अगर खाने पर बुलाया होता न तो डेढ़-दो दिन पहले से तो भूखे रहते थे, घर का बिगड़े नहीं न इसलिए, और खाने बैठते तो इतना सारा खा लेते थे कि दो दिन तक वापस खाना नहीं पड़े। यानी ऐसा ही समझते कि मैं मुफ्त का खा रहा हूँ, फ्री ऑफ कॉस्ट। मतलब कि नीयत कितनी चोर है? और उसी के दुःख भोगे हैं। विधवाओं को जिन्होंने परेशान किया था, आज उन सभी के घर पर बेटियाँ पैदा हुई और उन बेटियों ने डाइवोर्स लेकर जो तबाही भरा तूफ़ान मचा दिया है, उन्होंने अपने बाप को मार लगाई है, उन विधवाओं ने ही सब को परेशान किया है! मेरे यहाँ आकर क्यों परेशान नहीं करतीं? मैं था ही नहीं वैसा।
विधवा तो गंगास्वरूप होती है, उसका नाम कैसे लिया जाए? और फिर कहते क्या हैं? गंगास्वरूप। और कोई विधवा सामने मिल जाए तो कहते हैं कि, 'मुझे अपशुकन हो गए, अच्छा काम करने जा रहा था और