________________
जगत् - पागलों का हॉस्पिटल
२४५ आज के ये ही बच्चे सयाने और समझदार होकर एक दिन बाल कटवा देंगे, फिर मेन्टलपन गया और ये जो बाल कटवाकर सयाने-सज्जन होकर फिरते हैं न और अनाचार को सदाचार मानते हैं! कैसे? अनाचार को सदाचार, भाषा ही बदल डाली इन लोगों ने! 'मेन्टल!' और पूरा दिन झगड़े-झगड़े, और झगड़े बगैर का एक भी घर नहीं है। कुछ का कुछ बखेड़ा हुआ ही होता है। तीन इंसानों में तैंतीस मतभेद पड़ चुके होते हैं शाम तक! ग्यारह-ग्यारह हर एक के हिस्से में आए न!
मतभेद, मनभेद और तनभेद दादाश्री : मतभेद होता है तब अच्छा लगता है? तब कुछ होता है तुझे?
प्रश्नकर्ता : हाँ, वरीज़ होती हैं।
दादाश्री : मतभेद में इतना सब होता है तो मनभेद हो जाए तब क्या से क्या हो जाएगा? मतभेद होता है तब झगड़ा होता है और मनभेद होता है, तब डिवॉर्स ले लेते हैं और तनभेद होता है तब अर्थी निकलती है! वैसा यह भेद, भेद और भेदवाला जगत् है।
कंटालेवाला (काँटों की शैया पर लेटे हों ऐसा दुःख) जीवन तुझे पसंद है क्या?
प्रश्नकर्ता : जीवन दिया इसलिए जीना तो पड़ेगा ही न? फिर भले ही कैसा भी जीवन हो।
दादाश्री : जीवन देनेवाला कौन है? ऐसा कौन मूर्ख आदमी होगा कि इस तरह इन सब लोगों को दुःख में जलन के बीच जीने के लिए जीवन देता होगा? ऐसा कौन होगा? कोई होगा ऐसा? क्योंकि मालिकवालिक पागल-वागल हो गया है या वह भी मेन्टल हो गया है? पचास प्रतिशत मेन्टल हो तो शायद फिर भी चला लेंगे, लेकिन ये तो सभी मेन्टल, तब क्या मालिक मेन्टल बन गया है? कौन इसका चलानेवाला होगा?
प्रश्नकर्ता : भगवान।