________________
जगत् - पागलों का हॉस्पिटल
२३७
मुझे अपशुकन हो गए!' ऐसे लोगों का क्या करना चाहिए? लेकिन भगवान ने क्या कहा है कि 'यह अधिकार अपने हाथ में मत लेना।' भगवान इंसानों से कहते हैं कि, 'यह अधिकार आप अपने हाथ में मत लेना।' नैचुरल नियम ही है। नेचर कहता है कि, 'ऐसों का तो हम हिसाब कर ही लेते हैं, हमारा नियम ही है। वह अधिकार आप मत लेना।' और आज बहुत कष्ट उठा रहे हैं! ये सभी जो कष्ट उठा रहे हैं, वे खुद के ही कष्ट उठा रहे हैं। और ये तो डेवेलप हो रहे हैं, अन्डर डेवेलप्ड नहीं हैं। फिर भी हमें बात आचार की करनी चाहिए कि, 'बहन, उम्र हो गई है, यह जगत् फँसाववाला है। यदि आपको सुख ही चाहिए तो सोच-समझकर कदम बढ़ाना और कदम रखो तो हमें पूछ लेना। पूछोगी तो मैं आपत्ति नहीं उठाऊँगा। पूछना, सलाह के तौर पर।' इस वकील की सलाह लेते हैं तो क्या बाप वकील से भी गया-बीता है? वकील के बजाय तो बाप पर अधिक विश्वास होता है न?
हिन्दुस्तान सुधरा हुआ नहीं था, मन में से निकाल देने जैसा था, पोइज़नस था सारा, ज़हरीला था सारा। इस देश की दशा तो देखो कैसी हो गई है? लेकिन उसमें किसी का दोष नहीं था। कोई इंसान दोषित नहीं होता। एविडेन्स खड़े हो जाते हैं, उसमें सरकमस्टेन्सेज़ खड़े हो जाते हैं। अब यह बदलाव शुरू हो गया है।
_अब यह उच्च प्रकार का हो रहा है, ग़ज़ब के स्थल पर जा रहा है वर्ल्ड में आज! हिन्दुस्तान वर्ल्ड में ग़ज़ब के स्थल पर पहुँच गया है! वर्ना क्या मोक्ष की बात कर सकते थे? मोक्ष तो लिखने के लिए भी नहीं था, किसी को मोक्ष शब्द लिखने का भी अधिकार नहीं था। ये सभी आचार्य, महाराज, साधु थे न, वे सब ओवरवाइज़ हो गए थे, उनमें दोपाँच एक्सेप्शनल केस हो सकते थे शायद। बाकी तो ओवरवाइज़ मतलब ईंट चिनाई के काम में भी नहीं आए वैसी, डिफॉर्म हो चुकी हो वैसी खंगार ईंट (ज्यादा पकी हुई ईंट) जैसी! जो ओवरवाइज़ हैं उन्हें खंगार कहते हैं। जो ईंट कच्ची हो, अंडरवाइज़ हो, उस ईंट को आमरस ईंट कहते हैं।
भगवान के वहाँ तो सयानेपन की ही ज़रूरत है, जबकि यह सारा