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आप्तवाणी-२
में वे समझदार निकलेंगे क्योंकि मेन्टल हॉस्पिटल के मेन्टल लोगों के बच्चे हैं। इसलिए बच्चे सभी अच्छे होंगे!
और हिन्दुस्तान २००५ में पूरे वर्ल्ड का केन्द्र बन चुका होगा! इन मेन्टल लोगों के बच्चों को बाहर के लोग पूछने आएँगे कि 'हम खाएँ किस तरह? हम पढ़ें क्या-क्या?' ऐसा पूछने आएँगे। इन मेन्टल लोगों के बच्चे समझदार होंगे, इसलिए ये मेन्टल हो गए, वह अच्छा हुआ। ऐसे मेन्टल हो जाने से फायदा क्या हुआ? कि पिछली जो सारी संस्कृति थी न, वह पूरी कि पूरी अबॉलिश (ध्वस्त) हो गई, वॉश आउट (खत्म) हो गई। यह सब अच्छा हुआ है, बुरा नहीं हुआ। पिछले संस्कार सड़कर खत्म हो चुके थे!
तिरस्कार वृत्ति ने न्योता पतन को प्रश्नकर्ता : मेरी माता को देखता हूँ और मेरी पोती को देखता हूँ तो दोनों में मुझे इतना अधिक फर्क लगता है कि पूछो मत! अभी की प्रजा बिगड़ी हुई लगती है।
दादाश्री : और आपके दादा के समय में, दादा आपके लिए क्या कहते थे?
प्रश्नकर्ता : अभी मैंने जो कहा, वही कहते थे।
दादाश्री : हम बाज़ार से सुंदर, अच्छी लौकी लेकर आए हों और सब्जी तो बनानी ही है, इसलिए काटनी तो पड़ेगी ही न? और जब काटे तब कहेंगे कि, 'मत काटना, उसका सुंदर रूप बिगड़ जाएगा' लेकिन यदि सब्जी खानी हो तो उसके रूप को छोड़ना ही पड़ेगा। भारत यदि डेवेलप हुआ है, तो जैसा किसी काल में नहीं हुआ था, यह भारत अब वैसा डेवेलप होना शुरू हुआ है। ये तो बिल्कुल अनाचारी और दुराचारी ही थे। सौ में से पाँच या दो प्रतिशत लोग ही अच्छे निकलते थे। बाकी, सब वहम में
और सारे दिन क्लेश, कलह और तिरस्कार में ही बिताते थे। पूरा दिन तिरस्कार करते थे। निचले वर्गों के प्रति तिरस्कार रखते थे, दूसरों के प्रति तिरस्कार रखते थे, खुद के भाई का यदि कभी ज़रा भी आचार कम दिखाई