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संग असर
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फूल तोड़कर आप सूंघो या और कोई उपयोग करो तो उससे आपका उतना ही नुकसान है, लेकिन यदि केवल तोड़ा ही हो तो तोड़ने का ही नुकसान है। लेकिन यदि भगवान को चढ़ाने के लिए फूल तोड़े हैं तो विशेष फ़ायदा होगा। अभ्युदय और आनुषंगिक, भावपूजा के ये दो फल हैं। मोक्ष में भी ले जाता है और साथ में वैभव भी रहता है। संसारी को द्रव्यपूजा करनी है, और आत्मज्ञानियों को सिर्फ भावपूजा ही करनी होती है। लेकिन इस काल में इस क्षेत्र से मोक्ष नहीं है, इसलिए अभी तो दो-तीन जन्म शेष होने के कारण द्रव्यपूजा और भावपूजा दोनों करनी चाहिए।
___ भगवान महावीर थे तब अभ्युदय और आनुषंगिक, ये दोनों शब्द थे और उनके फल मिलते थे। फिर तो वे शब्द, शब्द ही रह गए। यदि आनुषंगिक फल मिले तो अभ्युदय फल सहजरूप से मिलता ही है। अभ्युदय, वह तो बाय प्रोडक्ट है। जिसने अंतिम स्टेज की आराधना की, आत्मा का आराधन किया, उसे बाय प्रोडक्ट में जिस चीज़ की ज़रूरत होती है वह अवश्य पूर्ण होती है। 'ज्ञानीपुरुष' मिलें और सांसारिक अभ्युदय नहीं हो तो साधु बन जाएगा।
यहाँ 'सत्संग' में बैठे-बैठे कर्म के बोझ कम होते जाते हैं और बाहर तो निरे कर्म के बोझ बढ़ते ही रहते हैं। निरी उलझनें ही हैं। हम आपको गारन्टी देते हैं कि जितना समय यहाँ सत्संग में बैठोगे उतने समय तक आपके काम-धंधे में कभी भी नुकसान नहीं होगा और लेखा-जोखा निकालोगे तो पता चलेगा कि फायदा ही हुआ है। यह सत्संग, यह क्या कोई ऐसा-वैसा सत्संग है? केवल आत्मा हेतु ही जो समय निकाले, उसे संसार में नुकसान कहाँ से होगा? सिर्फ फायदा ही होगा। लेकिन ऐसा समझ में आए, तब काम होगा न? यहाँ सत्संग में कभी किसी समय ऐसा काल आ जाता है कि यहाँ पर जो बैठा हो, उसका तो एक लाख साल का देवगति का आयुष्य बंध जाता है या फिर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेता है! इस सत्संग में बैठे तो यहाँ पर आना यों ही बेकार नहीं जाता। यह तो कैसा सुंदर काल आया है! भगवान के समय में सत्संग में जाना हो तो पैदल चलते-चलते जाना पड़ता था जबकि आज तो बस या ट्रेन में बैठे कि तुरंत