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संग असर
है। जहाँ आत्मा की, दरअसल आत्मा की बातें नहीं हैं, फिर भी धर्म की बातें होती हैं, रिलेटिव धर्म की बातें होती हैं, वह हंस की सभा है। उस जगह हिताहित के बारे में बताते हैं, वे शुभ का चारा चरते हैं और वे कभी न कभी मोक्ष पाएँगे। जहाँ पर समझदार लोग इकट्ठे नहीं होते और जहाँ लोग केवल वाद-विवाद ही करते रहते हैं, एक-दूसरे की सुनने को तैयार ही नहीं हैं, उस सभा को कौओं की सभा कहा गया है। हंस की सभा में तो अनंत जन्मों से बैठते आए हैं, लेकिन यदि एक जन्म परमहंस की सभा में बैठेगा तो मुक्ति मिल जाएगी । परमहंस की सभा में आत्मा और परमात्मा की, दो ही बातें होती हैं और यहाँ तो निरंतर देवी-देवता भी हाज़िर रहते हैं। हर एक जीव मात्र को आत्मज्ञान की ही इच्छा अंतिम है। लोग तप और त्याग कर-करके मर गए, लेकिन भगवान मिलते नहीं । जिसकी भावना सच्ची होती है, उसकी ही भगवान से भेंट होती है । यहाँ हमारे पास जो चीज़ चाहिए वह मिलती है । जहाँ सभी प्रकार के खुलासे होते हैं, वह परम सत्संग। हमारा इलकाब (पदवी) क्या है, पता है? हम मोक्षदाता पुरुष हैं, आप जो माँगो वह हम देते हैं! आपको काम निकालना आना चाहिए !
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अभ्युदय और आनुषंगिक फल
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कविराज ने गाया है :
'सत्संग है पुण्य संचालित, चाहूँ अभ्युदय आनुषंगिक ।'
'ज्ञानीपुरुष' से मिलें, तभी से दो फल मिलते हैं : एक 'अभ्युदय' यानी संसार में अभ्युदय होता जाता है, संसार फल मिलता है और दूसरा ‘आनुषंगिक' यानी मोक्षफल मिलता है। दोनों फल साथ में मिलते हैं। यदि दोनों फल साथ में नहीं मिलें तो वे 'ज्ञानीपुरुष' नहीं हैं। यह तो, बेहिसाब ओवरड्राफ्ट हैं इसलिए दिखता नहीं है । यह सत्संग करते हो, इसलिए वे ओवरड्राफ्ट पूरे होंगे ही।
यहाँ सिर्फ मोक्षफल ही नहीं है, यदि ऐसा होता तब तो एक कपड़ा भी पहनने को नहीं मिलता। लेकिन नहीं, मोक्षफल और संसारफल दोनों साथ में होते हैं।