________________
त्रिमंत्र विज्ञान भगवान ऋषभदेव, जो सभी धर्मों के मुख हैं, सभी धर्मोंवाले जिन्हें मान्य करते हैं, उन्होंने संसार व्यवहार के विघ्नों को टालने के लिए लोगों से कहा था कि, 'त्रिमंत्र साथ में बोलना।' त्रिमंत्र में पंच परमेष्टि नवकार मंत्र, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय और ॐ नमः शिवाय - इस प्रकार तीनों मंत्र साथ में बोलना, ऐसा भगवान ने कहा था। भगवान ने कहा कि, 'आपको अपनी सहूलियत के लिए मंदिर बाँटने हों तो बाँट लेना लेकिन तीनों मंत्र तो साथ में ही बोलना। हर एक धर्म का रक्षण करनेवाले रक्षक देवी-देवता होते हैं। शासन देवी-देवता होते हैं। ये तीनों मंत्र साथ में बोलने से सभी धर्मों के देवी-देवता अपने ऊपर खुश रहेंगे। यदि एक ही मंत्र बोलो तो बाकी धर्मों के देवी-देवता खुश नहीं रहेंगे। हमें तो सभी को खुश करके मोक्ष में जाना है न? अभी तो लोगों ने मंत्र बाँट दिए हैं। मंत्र तो मंत्र, लेकिन एकादशी भी बाँट ली हैं! शैव लोगों की एकादशी अलग और वैष्णवों की अलग। जैनों में भी एक तिथि के लिए झगड़े कर-करके अलग पंथ बना लिए हैं। मोक्ष में जाना हो तो निष्पक्षपाती बनना पड़ेगा, सभी रिलेटिव धर्मों की सत्ता मान्य करके, रियल का काम निकाल लेना है!
प्रश्नकर्ता : मंत्र क्या हैं?
दादाश्री : मंत्र, मन को आनंद देते हैं, मन को शक्ति देते हैं और मन को 'तर' करते हैं। जबकि भगवान के दिए गए मंत्र विघ्नों का नाश करते हैं। हमारा दिया हुआ 'त्रिमंत्र' सर्व विघ्नों का नाश करता है। इस 'त्रिमंत्र' की आराधना से तो भाले का घाव सूई जैसा लगता है। बाकी सभी मंत्र तो मन को तर करते हैं!
प्रश्नकर्ता : इस नवकार मंत्र में तो तमाम शास्त्र आ जाते हैं न?