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संग असर दादाश्री : सत्संग किसे कहते हैं? प्रश्नकर्ता : ईश्वर के घर की अच्छी बातें हों, उसे सत्संग कहते
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दादाश्री : ईश्वर को तो जाना नहीं कि वे कौन हैं और कौन नहीं, उसके बिना किस तरह उनकी बातें हो पाएँगी?
सत्संग तो बहुत प्रकार के हैं। पुस्तकें आदि का आराधन करते हैं वह भी सत्संग है। संतपुरुष का संग भी सत्संग है, सत्पुरुष का संग करे, वह भी सत्संग है और 'ज्ञानीपुरुष' का संग, वह भी सत्संग है और फिर अंत में वीतराग का संग, वह भी सत्संग कहलाता है। लेकिन उन सभी के प्रकार में फर्क है।
संतपुरुष किसे कहते हैं? जिनका चित्त निर्मल हो चुका है, वे संतपुरुष। संतपुरुष को निज के स्वरूप का भान नहीं होता। जिन्हें निज स्वरूप का भान होता है, जिन्हें हम स्वरूप का ज्ञान देते हैं, वे सत्पुरुष कहलाते हैं, और उससे आगे हैं 'ज्ञानीपुरुष' जो कि मुक्ति देते हैं, जो मोक्ष का दान दे सकते हैं, वे मोक्षदाता पुरुष हैं और उनसे भी आगे वीतराग हैं जिनके दर्शन मात्र से मोक्ष हो जाता है, वे वीतराग भगवान!
ज्ञानीपुरुष, वे खुद सत् हैं इसलिए उनका संग वह सत्संग, और उसे भगवान ने परमहंस की सभा कहा है। यहाँ तो रियल की ही बात होती है। जिस तरह हंस चोंच डुबोते ही नीर और क्षीर को अलग कर देता है, उसी तरह 'ज्ञानीपुरुष' से ज्ञान मिलते ही आत्मा और अनात्मा दोनों अलग ही हो जाते हैं। इसलिए उसे भगवान ने परमहंस की सभा कहा