________________
संसार स्वरूप : वैराग्य स्वरूप
२१
की माँ से कहा कि, 'अँधी उठ न, मेरे साहब आए हैं!' माँ को लात मारी और साहब के पास खुद की आबरू ढंकी। जैसे खुद बहुत बड़ा साहब नहीं हो! यह आबरू का बोरा! माँ की आबरू सँभालनी होती है या साहब
की?
ये आम किसलिए लाते हो? तब कहता है कि 'रस के लिए, स्वाद के लिए।' यह तो स्वार्थवाला जगत् है ! इसलिए अपने भीतरवाले भगवान सच्चे, और मोक्ष में गए तो काम हो गया, वर्ना ये तो 'उठ अँधी' ऐसा कहते हैं!
फिर कोई कहेगा कि मेरे यहाँ बच्चे नहीं हैं। इन बच्चों का क्या करना है? ऐसे बच्चे हों, वे परेशान करें, वे किस काम के? इससे अच्छा तो सेर मिट्टी नहीं हो तो अच्छा, और कौन से जन्म में तेरे यहाँ सेर मिट्टी नहीं थी? ये कुत्ते, बिल्ली, गधे, गाय, भैंस उन सभी जन्मों में बच्चों को ही गले से लगाकर फिरे हैं न? यह एक मनुष्य जन्म महामुश्किल से मिला है। वहाँ तो सीधा मर न! और मोक्ष का कुछ साधन ढूँढ निकाल, और काम निकाल ले। बेटा परेशान करे तब बुढ़िया कहेगी, 'भाड़ में जाए यह संसार, कड़वे ज़हर जैसा है।' तब हम कहें कि, 'माँजी, क्या यह संसार पहले कड़वा नहीं था?' वह तो हमेशा से कड़वा ही है। लेकिन मोह के कारण, मूर्छा के कारण मीठा लगता था। बेटा परेशान करे, उतने समय तक मूर्छा चली जाती है और संसार कड़वा लगता है। लेकिन फिर वापस मूर्छा आ जाती है और सबकुछ भूल जाता है! अज्ञानी तो एट ए टाइम घर जाकर सब भूल जाता है। जबकि ज्ञानी को तो एट ए ग्लान्स सब हाज़िर रहता है। उन्हें तो यह जगत् जैसा है वैसा निरंतर दिखता ही रहता है। तब फिर मोह रहे ही कहाँ से? यह तो उसे भान नहीं है, इसलिए मार खाता है।
जब सास से काम नहीं हो पाता, तब बहू सास से क्या कहती है कि 'एक तरफ बैठो'। नहीं तो सास को चक्की पीसने बिठा देती है। सास से कहती है कि 'आप पीसो, ताकि बीच में नहीं आओ।' जबकि माँ तो क्या समझती है कि 'बेटा बड़ा होगा, तब मेरी चाकरी करेगा।' अब वह तो चाकरी करेगा या भाखरी(एक तरह की रोटी) वह बाद में पता चलता