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धर्मध्यान
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रंग का इंसान, वह आर्तध्यान और गोरे रंग का इंसान, वह रौद्रध्यान कहलाता है?
क्रोध तो किसी और पर आता है न? क्रोध यदि खुद अपने आप पर करे तो भगवान ने उसे आर्तध्यान माना है, लेकिन क्रोध किसी और के लिए करता है। खुद पर करे, ऐसी कोई कच्ची माया नहीं है। ये सभी पक्के हैं। खुद पर क्रोध नहीं करते! खुद पर क्रोध करें, लोग क्या ऐसे हैं? दूसरों पर करते हैं न? दूसरों पर क्रोध किया तो वह दूसरों को दुःख देने का भाव किया। क्रोध, वह दूसरों को दु:ख देने का भाव कहलाता है। लोभ, वह औरों से ले लेने का भाव कहलाता है। कपट और माया, वे तो किसी और व्यक्ति को नुकसान पहुँचाकर उससे ले लेने के भाव हैं। और मान, वह तिरस्कार है, दूसरों का तिरस्कार करने का भाव है। वह सभी रौद्रध्यान है। क्रोध-मान-माया-लोभ, वह रौद्रध्यान है।
आर्तध्यान किसे कहते हैं? आर्तध्यान तो, अभी आपके यहाँ दो मेहमान आए हों, वे आपको पसंद हों या आपको पसंद नहीं भी हों, ऐसे मेहमान होते हैं या नहीं? नापसंद मेहमान होते हैं तब होता है कि, 'ये कहाँ से आ गए?' दरवाज़े में प्रवेश किया और तभी से आपको अंदर बेचैनी होने लगती है और फिर मुँह पर कहना पड़ता है कि, 'आइए, बैठिए।' उन्हें ऐसा कहना पड़ता है या नहीं कहना पड़ता? क्योंकि वैसा न कहें तो आबरू जाए, बाहर फजीता करेंगे न अपना? इसलिए आओ, बैठो कहना पड़ता है। और अंदर बेचैनी होती रहती है, उसे आर्तध्यान कहा है भगवान ने। आर्तध्यान मतलब खुद के लिए ही पीड़ाकारी ध्यान। अब मेहमान आए हैं, तब क्या वापस चले जानेवाले हैं? तब कहना चाहिए कि आइए बैठिए और अगर भीतर आर्तध्यान होने लगे तो वह नहीं होने देना चाहिए, ऐसा भगवान ने कहा है। और अगर हो जाए तो प्रतिक्रमण करना चाहिए कि, भगवान ऐसा क्यों हो रहा है? मुझे नहीं करना है ऐसा।' या फिर कोई दो व्यक्ति पसंद हों या आपकी वृद्ध माँ आई हों न, वे दो दिन के लिए आई हों और आठ दिन तक रहें तो बहुत अच्छा, ऐसी भावना होती है न, तो वह भी आर्तध्यान